________________
भरत चक्रवर्ती का साम्राज्य-विस्तार
17
और विनाश का साधन बता रहा है ? रे दुर्बुद्धि, क्या तू यह नहीं जानता कि चक्र तो कुम्हार भी चलाता है और वह भी दण्ड का सहारा लेकर ? तेरा स्वामी भी कुम्हार ही है क्या, जिसके पास चक्र भी है और दण्ड भी ? तूने अपने स्वामी को भिखमंगा बना दिया। वह मुझसे मेरी पृथ्वी की भिक्षा मांग रहा है। उधर तू यह भी कह रहा है कि यदि मैं जाकर प्रणाम करूं तो स्वामी से सम्पदा पाऊँगा । रे बुद्धिहीन, अपने मुंह से अपनी बड़ाई और दूसरों की हीनता?"
दूत बाहुबली के इस आक्रोश को समझ रहा था। उसने निवेदन किया"महाराज, आपकी अकृपा मैं नहीं चाहता, किन्तु जिनकी कृपा आपके हित में है उन अग्रज की ओर से ही मैं यह कह रहा हूँ।" ____ बाहुबली की भृकुटि में बल आ गया । बोले, "एक बात कहकर तू मानो घी को ताव दे रहा है, तो साथ ही दूसरी बात कह कर तू उसमें पानी डाल कर उसे शान्त करना चाहता है। तू क्या इतना भी नहीं जानता कि इससे घी अधिक खोलता है और छनछनाहट करता है ? बड़ा भाई नमस्कार करने योग्य है, यह मैं मानता हूँ। किन्तु जो भाई गर्दन पर तलवार रखकर प्रणाम करवाना चाहे, उसकी अधीनता कैसे सही जा सकती है ? बता तो-आदिब्रह्मा भगवान ऋषभदेव ने राजा की उपाधि किसे दी ?"
"वीरवर महाराज भरत को, और आपको भी !" ___ "ठीक" बाहुबली बोले, "किन्तु अब भरत राजराजा बनना चाहता है, वह भी मुझे नीचा दिखाकर ? व्यर्थ है यह।रे दूत, पूछ अपने स्वामी से कि जिस धरालक्ष्मी को पिता ने मुझे दिया, जो मेरी वल्लभा है, उसका अपहरण करके वह मानो भाई की स्त्री को हरना चाहता है ? उसे लज्जा नहीं आती? समझ ले अच्छी तरह कि मुझे पराजित किये बिना वह मेरी पृथ्वी का भोग नहीं कर पायेगा।"
दूत ने अब अन्तिम परिणाम पर वर्तालाप को पहुँचाना उचित समझा, जैसा कि वह अपने स्वामी से संकेत लेकर आया था। उसने कहा, "तब तो महाराज, युद्धक्षेत्र में ही महाप्रतापी चक्रवर्ती भरत इस समस्या का समाधान आपके समक्ष प्रस्तुत करेंगे।"
"मूढ़मति, दूत ! भरत युद्धक्षेत्र को कसोटी बनाना चाहते हैं तो उसी पर मेरा और भरत का पराक्रम कसा जायेगा। जा, जाकर स्पष्ट कह दे।" बाहुबली के स्वर में गर्जना थी। क्षणभर रुककर बोले, "तेरे दुःसाहस को मैंने इसीलिए उपेक्षित किया कि तू दूत का कर्तव्य निभा रहा है।"
परिणाम यह कि दोनों भाइयों में ठन गई । युद्ध के नगाड़े बज उठे। दोनों ओर की सेनाओं ने युद्ध के लिए कूच कर दिया और आमने-सामने आ पहुँचीं। महानाश की आशंका से त्रस्त दोनों ओर के बुद्धिमान वयोवृद्ध मन्त्रियों ने मिलकर सलाह की। "दो भाईयों की आपसी बात है। इसमें तीसरे किसी का क्या ? युद्ध