________________
16
अन्तर्वेन्द्रों के पार हम लोग तो स्वामी के अभिप्राय के अनुसार कहते हैं। चक्रवर्ती ने जो प्रिय और उचित आज्ञा दी है, मैं उसे निवेदन करने आया है। उसे स्वीकार करने का आधार यही होना चाहिए कि उसके पीछे वार्ता भेजने वाले का गौरव मान्य है । शास्त्र का वचन है कि गुरुजन का आदेश किसी तर्क-वितर्क के बिना मान लेना चाहिये । भरत इक्ष्वाकुवंश के ज्येष्ठ पुरुष हैं, भगवान ऋषभदेव के पुत्र हैं, राजाओं में प्रथम हैं, आपके अग्रज हैं। उन्होंने देवों को भी वश में करके उनसे प्रणाम करवाया
___ संदेश-वाहक नायक बहुत चतुर था। उसने बाहुबली के चेहरे पर उभरने वाले भाव की छाया देखी, और इस आशंका से कि कहीं वह कोई अप्रिय बात कहने का उपक्रम न करें, भरत के शौर्य को, उनकी शक्ति को, बखानना उचित समझा। उसने बात का क्रम बनाये रखते हुए कहा: __"भरत चक्रवर्ती की शूरवीरता की गाथा इस दिग्विजय के कारण अमर हो गई है। उन्होंने समुद्र में अपना अश्वरथ दौड़ा दिया । बारह योजन दूर तक जाने वाले उनके वाण ने महासागर में रहने वाले मागधदेव को कंपा दिया। विजयार्द्ध पर्वत के देव को जीतकर उससे अपनी स्तुति करवायी। म्लेच्छों का राजा विरोध करना चाहता था किन्तु भरत के सेनापति ने अपने ही बल से हराकर, उसका धन छीन कर, उसे दास बना लिया है। हे आयुष्मन, विश्वमान्य महाराज भरत अपने चक्रवर्तित्व की प्रतिष्ठा आप तक पहुँचाकर आपको आशीर्वाद देते हुए यह आज्ञा कर रहे हैं कि समस्त द्वीप-समुद्रों तक फैला हुआ हमारा यह राज्य बिना हमारे भाई बाहुबली की उपस्थिति के शोभा नहीं दे रहा है । ऐश्वर्य वही सार्थक है जिसे भाई लोग साथ-साथ भोगें। इसलिए आप चलकर उन्हें प्रणाम करें।" _दूत बाहुवली के भावों के ज्वार को परख रहा था। अब अन्तिम तर्क शेष था जो अकाट्य होना चाहिए । दूत ने स्वर को गम्भीर बनाकर कहा : ___"यदि कोई शत्रु प्रणाम न करे तो उससे दुख नहीं होता किन्तु यदि लघु भ्राता आकर प्रणाम न करे तो वह कहीं अधिक दुखदायी होता है। आप प्रणाम करके उनका सत्कार कीजिये । इससे आपकी सम्पदाएं बढ़ेगी। भरत महाराज का चक्ररत्न साथ चलता है, उसका कोई उल्लंघन नहीं कर सकता। उनके विरुद्ध जाने का इसी कारण कोई साहस ही नहीं कर सकता। और, उनका दण्डरत्न विमुख नरेशों को दण्ड देता चलता है। देखिये, कितने मण्डलेश्वर राजा इस दण्ड के कारण खण्डखण्ड हो गये हैं। आप विलम्ब न करें। चलकर प्रणाम करें। भाईयों के मिलन से संसार पुलकित होगा।"
"रे मूर्ख", बाहुबली गरजे । "तू बोले ही चला जा रहा है, और तुझे स्वयं पता नहीं कि क्या अनर्गल कह रहा है ? तू शान्ति और प्रेम की बात कर रहा है, या चक्र के प्रभाव की जो पराधीन बनाता है; या उस दण्डरत्न की, जिसे तू भय