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भरत चक्रवर्ती का साम्राज्य विस्तार
अहं के अणु का विस्फोट
तीर्थंकर आदिनाथ जब राज्य त्यागकर प्रव्रज्या की ओर उन्मुख हुए थे, तभी उन्होंने भरत को राजधानी अयोध्या का राज्य देकर, बाहुबली को युवराज घोषित कर दिया था और उन्हें पोदनपुर का राजा बना दिया था । भरत के शेष भाईयों को भी अलग-अलग राज्यों का स्वामित्व प्राप्त हुआ था ।
एक दिन राजर्षि भरत राज्य सभा में बैठे हुए थे कि एक के बाद एक, तीन संदेहवाहक आये और हृदय को आनन्दित करने वाले समाचार देते गये । धर्माधिकारी पुरुष ने आकर समाचार दिया कि भरत के पिता, आदिनाथ, को केवल - ज्ञान प्राप्त हो गया है । यह उनकी साधना और तपस्या की सिद्धि थी । 'भगवान् आदिनाथ अब जन-जन को धर्मोपदेश देने के लिए विश्व में विहार करेंगे, उनके धर्मचक्र का प्रवर्तन होगा' यह विचारकर भरत प्रमुदित हुए। मन ही मन उन्होंने भगवान को प्रणाम किया। तभी राज प्रासाद का प्रमुख संदेशवाहक आ उपस्थित हुआ । उल्लास के कारण उसकी वाणी मानो सँभाले में नहीं आ रही थी । उसने समाचार दिया : "महाराज, आपको पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ है ।" सन्तान का मुख देखने के लिए भरत अधीर हो गये । पितृत्व की साध पूरी हो गई। राज्य लक्ष्मी का वरण करने वाले नन्हें-से राजकुमार के प्रादुर्भाव ने प्रजा के सामने राग-रंग का अद्भुत अवसर उपस्थित कर दिया। समाचार के आनन्द को महाराज भरत अभी आत्मसात् कर ही रहे थे कि आयुधशाला का अधिपति हर्षोन्मत्त-सा आया, यह निवेदन करने कि आयुधशाला में चक्ररत्न प्रकट हुआ है। यह भरत के चक्रवर्तित्व का चिह्न था । एक क्षण में ही भरत की कल्पना में अपने राज्य की सीमाएँ चारोंदिशाओं को सम्पूर्ण रूप से व्याप्त करती दिखाई देने लगीं ।
पिता का केवलज्ञान 'धर्म' पुरुषार्थ की सिद्धि थी । चक्ररत्न 'अर्थ' पुरुषार्थं की