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कुलकरों की भोगभूमि से... निर्णय का दायित्व ले।"
आदि तीर्थंकर ऋषभदेव भोगभूमि की व्यवस्था समाप्त हो चुकी थी और कर्मभूमि का प्रारम्भ हो चुका था । पुरुष और स्त्री अलग-अलग उत्पन्न होते, और अलग-अलग अपना जीवनयापन करने के उपरान्त मृत्यु को प्राप्त होते । राजतन्त्र ने भी नया रूप ले लिया था। चौदहवें कुलकर 'राजा' नाभिराय के बाद समाज-व्यवस्था और शासन-तन्त्र को विकास की मंजिलों तक पहुँचाने का दायित्व उनके एकमात्र पुत्र ऋषभदेव ने लिया । अयोध्या उनकी राजधानी थी। उनकी दो रानियां थीं—यशस्वती
और सुनन्दा । यशस्वती से भरत आदि सौ पुत्र और एक पुत्री- ब्राह्मी-उत्सन्न हुई। भरत इनमें सबसे ज्येष्ठ थे । हमारे देश का नाम भारतवर्ष इन्हीं ऋषभपुत्र भरत के नाम पर निर्धारित है। इस संबंध में शिवपुराण और श्रीमद्भागवत में भी उल्लेख मिलता है :
नामेः पुत्रश्च ऋषभः ऋषभाद् भरतोऽभवत् । तस्य नाम्ना त्विदं वर्ष भारतं चेति कीर्त्यते ॥
___-शिवपुराण, अध्याय 37/57 येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुण आसीत् येनेदं वर्ष भारतमिति व्यपविशन्ति ।
-श्रीमद्भागवत, पंचम स्कन्ध, अध्याय 4/9 ऋषभदेव की दूसरी रानी सुनन्दा की कोख से एक पुत्र बाहुबली, और एक कन्या 'सुन्दरी', ने जन्म लिया।
सामाजिक संदर्भ में आजीविका के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाकर ऋषभदेव मानवजाति के महान् नेता बने । कल्पवृक्ष तो नष्ट हो ही चुके थे, स्वतः उत्पन्न होने वाले धान्य भी जब दुर्लभ हो गये तो प्रजा व्याकुल हो उठी।।
"महाराज, हम नाश के कगार पर खड़े हैं। हमारे सामने प्राणों का संकट उपस्थित है। हम भूखे हैं। हम क्या खायें ?" प्रजा ने सामूहिक प्रार्थना की।
"तुम्हारी समस्या का समाधान मैंने सोच लिया है," ऋषभदेव बोले । "देखो, यह पृथ्वी विश्वंभरा है। सारे विश्व को पाल सकती है। यह अन्नपूर्णा है । मैं बताता हूँ कि 'बीज' क्या होता है और धरती की परत को तीक्ष्ण नोक वाले फलके से खींचकर, 'कृप' करके, बीज किस तरह बोया जाता है। यही 'कृषि' कहलाती है। अन्न इसी से उत्पन्न किया जाता है।" कृषि की शिक्षा देकर ऋषभदेव ने क्षुधा के भयंकर रोग का उपचार किया। . ___और फिर, आत्मरक्षा के लिए अस्त्र-शस्त्र चलाने की विद्या उन्होंने सिखायी। वस्तुओं के लेन-देन की वणिज पद्धति बतायी। अनेक कलाओं की और साहित्य