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अन्तर्द्वन्द्वों के पार
झिल्ली में लिपटी दिखाई देने लगी। मनुष्य के लिए यह नयी समस्या थी। तब तत्कालीन कुलकर 'प्रसेनजित्' ने प्रसा (झिल्ली) को शुद्ध करने की विधि बतायी। ____ अन्त में उत्पन्न हुए चौदहवें कुलकर 'नाभिराज'। इन्होंने सन्तान-उत्पत्ति के समय उस के नाभि-नाल को काटने की विधि बतायी। यही नाभिराज थे भगवान ऋषभ के पिता।
__ भोगभूमि का काल प्रायः समाप्त हो गया। कल्पवक्ष भी बिल्कुल समाप्त हो गये। किन्तु नये-नये प्रकार के पेड़-पौधे, पशु-पक्षी उत्पन्त होने लगे। तब नाभिराज ने प्रजा को आश्वस्त करते हुए इन सामान्य पेड़-पौधों से जीवन-यापन करने की उन्हें विधि बतायी। साथ ही, विष-वृक्ष और औषधि-वृक्षों में अन्तर बताया तथा उनकी हेयोपादेयता की शिक्षा दी। वह नाभिराज कुलकर ही थे जिन्होंने सर्वप्रथम गीली मिट्टी से थाली आदि पात्र बनाने की विधि तत्कालीन समाज को बतलायी।
इस प्रकार सृष्टि के भोग-युग के अन्त और कर्मयुग के प्रारम्भ की इस सन्धिवेला में नाभिराज ने मानव-समाज में कर्मभूमि के उपयुक्त व्यवस्था का सूत्रपात किया। ____ अनुशासन भंग करने वालों के लिए दण्ड-विधान की व्यवस्था कुलकरों के समय में इस प्रकार रही कि पहले पाँच कुलकर केवल 'हा!' कह कर नियमभंग करने वालों को दण्डित करते थे— 'खेद है कि तूने ऐसा किया।' अगले पांच कुलकरों के समय में अपराध करने वाले को केवल यह कहकर दण्ड दिया जाता था'मा' अर्थात् 'अब मत करना'। फिर अगले चार कुलकरों के समय में जिस कठोरतम दण्ड का आविष्कार हुआ, वह था-'धिक्'-धिक्कार है तुझ पर। ___ ये सब कुलकर ज्ञानी और कुशल व्यक्ति थे। समाज को स्थिर करने, उसे निर्भय बनाने, परस्पर की कलह को मिटाने, दण्ड-विधान और शासन-व्यवस्था चलाने के कारण इनके नेतृत्व को मान मिला।
आदियुग के मानव की इस स्थिति का, कुलकरों की परम्परा का, संकेत आज इतिहास की पुस्तकों में भी स्वीकृत है । 'भारत का इतिहास' भाग-1 में इतिहासवेत्ता डा० रोमिला थापर ने लिखा है : __ "विश्व की आदिम मानव-व्यवस्था का एक ऐसा युग था जब पुरुषों और स्त्रियों को किसी वस्तु का अभाव नहीं था, कोई इच्छा अपूर्ण नहीं रहती थी। उन्हें सब साधन स्वयं प्राप्त थे। धीरे-धीरे अवनति का काल आता गया। मनुष्यों में आवश्यकताओं, अभावों का उदय हुआ । कुटुम्ब की धारणा ने वैयक्तिक पदार्थों के संग्रह को उत्प्रेरित किया। इस कारण विवाद और संघर्ष प्रारम्भ हुए, और तब नियम तथा विधान की व्यवस्था की आवश्यकता हुई । अतः निर्णय किया गया कि एक व्यक्ति के हाथ में शासन और कुलों की व्यवस्था दी जाये जो न्याय और