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उन्होंने सांस्कृतिक उन्नयन के लिए देश को ही नहीं, विदेशों को भी अपना कार्यक्षेत्र बनाया। भविष्य के प्रति उन्होंने हमें अधिक आशान्वित किया है कि इन क्षेत्रों का सांस्कृतिक वैभव अपनी समस्त ऊर्जा के साथ प्रवृद्ध होगा।
भारतीय ज्ञानपीठ की परम्पराओं के निर्वाह और प्रगति के प्रति सदा सचेष्ट श्री साहू अशोककुमार जैन, मैनेजिंग ट्रस्टी, के प्रति आभारी हूँ कि उनकी प्रीतिकर सदाशयता के कारण यह सृजनात्मक प्रयास सम्भव हुआ। ___ज्ञानपीठ में डा० गुलाबचन्द्र जैन ने शिलालेखों का क्रमांक ठीक-ठीक बनाने में बहुत परिश्रम किया है। मुद्रण का दायित्व भी उन्हीं ने संभाला है। विषयगत पूर्वापर सम्बन्ध जांचा है। श्री गोपीलाल अमर ने जब जिस प्रकार के सहयोग की अपेक्षा हुई प्रसन्नतापूर्वक प्रस्तुत किया। दोनों का साधुवाद !
श्रवणबेल्गोल की स्थापत्य एवं कला-सम्पदा इतनी समृद्ध है कि इसे आधार बनाकर अनेक विधा-वर्गों के चित्र-सम्पुट (एल्बम) तैयार किये जा सकते हैं। जैन कला की विविधता, विशालता, भव्यता और विकासोन्मुखता की ओर भारतीय ज्ञानपीठ के संस्थापकों-स्व० श्री शान्तिप्रसादजी और उनकी सहधर्मिणी स्व० श्रीमती रमा जैन का ध्यान सदा आकृष्ट रहा है। यही कारण है कि भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा 'जैन कला और स्थापत्य' शीर्षक से हिन्दी तथा अंग्रेजी में तीन-तीन खण्ड प्रकाशित हुए हैं जिनका अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर समादर हुआ है। ___इस पुस्तक में हम अत्यन्त सीमित संख्या में चित्र दे पाये हैं। इनके लिए हम भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के प्रति विशेष रूप से कृतज्ञ हैं। परिच्छद के लिए चित्र श्री हरिश्चन्द्र जैन से साभार प्राप्त हुआ।
ऐसे कठिन लेखन के निर्वाह में तथ्यों की जो नयी धरती गोड़नी पड़ी है, उसमें हाथ चूक जाना या असावधानी के कारण विपर्यय हो जाना सम्भव है। उदारचेता विद्वान क्षमा करेंगे और मार्ग-दर्शन देंगे।
निर्वाण महोत्सव पर 'वर्धमान रूपायन' के शैली-शिल्प की सर्जिका सहधर्मिणी कुन्था जैन का उल्लेख करना वैसा ही है जैसे अपने हस्ताक्षर करना। मूर्ति प्रतिष्ठापना के सहस्राब्दि महोत्सव पर यह श्रद्धा-सुमन सम्भव हो पाया, यह हम दम्पती का सौभाग्य है।
क्षमापर्व 7 सितम्बर, 1979
लक्ष्मीचन्द्र जैन