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गोम्मटेश्वर-स्तुति [हिन्दी पद्यानुवाद : लक्ष्मीचन्द्र जैन)
(1)
चारु लोचन नील उत्पल-दल सदृश, चन्द्रमा के बिम्ब-सा मुख समुज्ज्वल, नासिका ज्यों फूल चम्पा का सुभग, नित्य मैं उन गोम्मटेश्वर को नमूं ।
(2)
स्वच्छ छाया-हीन वपु, सु-कपोल ज्यों जल-कान्ति; फैले कर्ण युग आबाहु, गजराज की सित शुण्ड-से भुज-दण्ड, नित्य मैं उन गोम्मटेश्वर की नम।
(3)
दिव्यता को विजित करती कण्ठ-छवि, स्कन्ध हिमगिरि सदृश तुङ्ग विशाल, दृष्टि-सुख है मध्य का कटि भाग, नित्य मैं उन गोम्मटेश्वर को नमूं ।