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अन्तर्द्वन्द्वों के पार
चन्द्रप्रभ बसदि
इस बसदि में चन्द्रप्रभ तीर्थंकर की तीन फुट ऊंची मूल प्रतिमा प्रतिष्ठित है । सुखनासि में तीर्थंकर के यक्ष-यक्षी श्याम और ज्वालामालिनी प्रतिष्ठित हैं । मन्दिर के सामने की शिला पर लेख क्रमांक 140 में 'सिवमारन बसदि' अंकित है । इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण गंग-नरेश शिवमार द्वितीय ( लगभग 800 ई०) ने कराया ।
चामुण्डराय बसदि
विशाल भवन । आकार 69 X36 फुट । बनावट और सजावट में चन्द्रगिरि पर सबसे सुन्दर । शिल्पकला का एक अनूठा नमूना । इसके ऊपर दूसरा खण्ड और एक गुम्मद भी है।
मन्दिर में तीर्थंकर नेमिनाथ की 5 फुट ऊँची, मनोज्ञ मूर्ति विराजमान है । गर्भगृह के दरवाजे पर बाजुओं में यक्ष सर्वा और यक्षिणी कूष्माण्डिनी उत्कीर्ण हैं । इसकी बाहरी दीवारों, स्तम्भों, आलों में भी उकेरी हुई मूर्तियाँ हैं। बाहरी दरवाजे के दोनों बाजुओं पर नीचे की ओर लेख ( क्र० 151 ) है— 'श्री चामुन्डरायं माडिसिवं ।' तदनुसार इसे स्वयं चामुण्डराय ने 982 ई० के आसपास
बनवाया ।
मन्दिर के ऊपर के खण्ड में पार्श्वनाथ की तीन प्रतिमाएँ हैं। सिंहासन पर लेख (क्र० 150 ) है कि चामुण्डराय के पुत्र जिनदेव ने बेल्गोल में जिनमन्दिर निर्माण कराया । अर्थात् यह खण्ड पीछे बना ।
विशालता और कलात्मकता के साथ-साथ इस मन्दिर का अपना एक अन्य गौरव भी है। कहा जाता है कि आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने इसी मन्दिर में बैठकर जैन सिद्धान्त के महान् ग्रन्थ 'गोम्मटसार' की रचना की थी । शासन बसदि
इसका आकार 55X26 फुट है। शासन मन्दिर के दरवाजे पर एक लेख ( ० 82 ) है । लेख को ही 'शासन' कहते हैं। इसी से इसका नाम शासन बसदि पड़ा। इसके गर्भगृह में आदिनाथ की 5 फुट ऊँची मूर्ति है। उसके दोनों ओर चौरीवाहक हैं। शुकनासिका में गोमुख यक्ष और चक्रेश्वरी यक्षी हैं । बाहरी दीवारों में स्तम्भों और आलों की सजावट है । उनके बीच-बीच में प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं । तीर्थंकर आदिनाथ के सिंहासन पर लेख ( क्र० 84 ) है जिसका अभिप्राय है कि गंगराज सेनापति ने 'इन्दिरा कुलगृह' नाम से इसे बनवाया था !