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स्मारक चतुष्टय
गया है। इस विशाल भवन में कहीं कोई खिड़की नहीं, कोई दरवाजा नहीं। ऊपर से चारों ओर ऊंची दीवार है जो प्रकाश रोकती है। मन्दिर की मुख्य मूर्ति तीर्थंकर आदिनाथ की है, छह फुट ऊँची पद्मासन, मनमोहक । इसके दोनों ओर चौरीवाहक हैं। केवल यही एक मन्दिर है जिसके गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणापथ है। 1118 ई. के एक लेख (क्र० 80) से स्पष्ट है कि इस मन्दिर का निर्माण होयसल नरेश विष्णुवर्धन के सेनापति गंगराज ने अपनी माता पोचब्बे के हेतु कराया था। महिलाओं की भक्ति की गाथा इस मन्दिर के साथ जुड़ी हुई है । एक तो पोचब्बे की भक्ति-भावना मन्दिर के निर्माण का प्रमुख कारण थी; साथ ही, सौ वर्ष बाद अन्य दो महिलाओं-देवी रुक्मिणी और केम्पम्मणि ने इसका जीर्णोद्धार कराया था।
चन्द गुप्त बसदि
यह मन्दिर स्वयं सम्राट चन्द्रगुप्त द्वारा निर्मित बताया जाता है। यह चन्द्रगिरि का सबसे छोटा जिनालय है। इसके तीन कोठों में तीर्थंकर पार्श्वनाथ, पद्मावती और कूष्माण्डिनी की मूर्तियाँ हैं। बीच के कोठे के सामने सभाभवन है जिसमें क्षेत्रपाल की मूर्ति है। बरामदे के दायें छोर पर धरणेन्द्र यक्ष और बायें छोर पर सर्वाङ्ग यक्ष निर्मित हैं। बरामदे के सामने जो दरवाजा है, उसका कलाकौशल मनोहारी है। ____ चन्द्रगुप्त बसदि में जो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात है, वह है मण्डप की दीवार पर उकेरा गया जाली का काम, जिसमें 90 फलक या चित्रखण्ड हैं । इन फलकों में श्रुतकेवली भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त के जीवन के दृश्य अंकित हैं। यह फलक-समूह अपूर्व कौशल का नमूना है। फलकों का वर्णन पहले आ ही चुका है। इस जाली पर कलाकार का नाम 'दासोजः' लिखा है । मन्दिर के दोनों बाजुओं पर छोटे खुदावदार शिखर भी हैं।
शान्तिनाथ वसदि इसकी लम्बाई-चौड़ाई 24X16 फुट है। इसमें तीर्थंकर शान्तिनाथ की 11 फुट ऊँची मनोज्ञ खड्गासन प्रतिमा है। किंवदन्ती है कि श्री रामचन्द्रजी अपने दल-बल के साथ जिन दिनों यहां विश्राम कर रहे थे उस समय मन्दोदरी ने इस मूर्ति की प्रतिष्ठा करायी थी। सुपार्श्वनाथ बसदि इसका आकार 25X14 फुट है। इसमें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ की तीन फुट ऊंची पद्मासन प्रतिमा है जो सप्तनागफणी की छाया में विराजमान है।