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द्वितीय अङ्क
स्वयंवर हो चुका है तथा अन्जना पवनजंय को अपने पति के रूप में वरण कर लेती है । विवाह के बाद अञ्जना तथा उसकी सखी घसन्तमाला पवनंजय के पिता राजा प्रहलाद को राजधानी आदित्यपुर में आती हैं, उनका यथोचित आदर होता है।
पवनंजय और अञ्जना प्रमदवन में वकुलोद्यान में भ्रमण करते हैं। उन दोनों में प्रेमालाप होता है । पवनंजय को अपने पिता प्रहाद के मन्त्री विजयशर्मन् से यह ज्ञात होता है कि राजा प्रसाद वरुण के विरुद्ध युद्ध करने के लिए प्रयाण करने वाले हैं। वरुण, रावण दक्षिण समुद्र में स्थित लङ्का के राजा रावण का शत्रु है और पश्चिम समुद्र में ठहरा हुआ है । उसने रावण के दो सेनानायकों को बन्दी बना लिया है।
दोनों सेनानायकों को छुड़ाने के लिए रावण की प्रार्थना पर प्रहलाद को जाना है । उनकी इच्छा है कि उनकी अनुपस्थिति में पवनंजय को राजधानी की रक्षा करना है, किन्तु अन्त में पवनंजय स्वयं को वरुण के विरुद्ध प्रयाण करने हेतु तैयार कर लेते हैं ।
तूतीय अङ्क
वरुण और पवनञ्जय में चार माह से युद्ध हो रहा है। पवनंजय वरुण को शीघ्र और अचानक हराने के लिए धीरे धीरे युद्ध कर रहे हैं। उन्हें आशङ्का है कि रावण के दोनों सेनानायकों का जीवन खतरे में न पड़ जाय । पवनंजय दिन पर अपनी सेना का निरीक्षण करने के बाद कुमुद्रती तीर पर विश्राम कर रहे हैं ।
चन्द्रमा पूर्व में उदित हो रहा है । पवनंजय एक चक्रयाकी को देखते हैं, जो कि चक्रवाक के वियोग में व्याकुल हो रही है । तत्काल उन्हें अमन को याद आ जाती है । वह प्रेम के कारण बहुत व्याकुल हो जाते हैं । अन्त में वे शीघ्र ही विजयाई पर्वत पर जाकर अंजना से शीघ्र ही उसके महल में गुप्त रूप से मिलने का निश्चय कर लेते हैं । एक विमान में बैठकर वे आदित्यपुर पहुँचते है और वहाँ अंजना के महल में प्रविष्ट हो रात्रि उसके साथ बिताते हैं तथा दूसरे दिन प्रात:काल युद्धभूमि में लौट आते हैं।
चतुर्थ अङ्क ___ वसन्तमाला के स्वागत कधन तथा केतुमती की परिचारिका युक्तिमती के साथ उसकी बातचीत से हमें ज्ञात होता है कि पवनंजय को अंजना से गुप्त रूप से मिले हुए चार माह बीत गए हैं । अंजना में गर्भ के लक्षण प्रकट होने लगे हैं। दोनों पवनंजय की मां केतुमती की प्रतिक्रिया के विषय में चिन्तित हैं । वे आशा करती है और प्रार्थना करती है कि केतुमती अंजना के प्रति क्रूर और कठोर नहीं होगी । वसन्तमाला गर्भ का औचित्य सिद्ध करने के लिए युक्तिमती से पवनंजय के चार मास पूर्व आकर चले जाने की बात बता देती हैं । केतुमती पधनंजय के आने का विश्वास न करके अञ्जना को शराबी क्रूर भैरव के द्वारा निर्वासित करा देती है और उसके पिता राजा महेन्द्र के यहाँ भिजवा देती है, किन्तु अंजना को जो साञ्छन लगाकर भेजा था, उसके कारण वह पिता के यहाँ न जाकर मार्ग में भूषखाट वीथि में उतर जाती है । क्रूर भैरव से कह देती है कि तुम कह देना कि हम महेन्द्रपुर में छोड़ आये है और हम यहाँ चले जायेगे ।