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________________ पंचम अंक पवनंजय अन्त में वरुण को पराजित कर रावण के दोनों सेनानायक खर और दूषण को मुक्त करा देते हैं । वरुण के साथ मैत्री की सन्धि कर पवनंजय विद्याधरों के साथ विजयाई को लौट रहे हैं । पषनंजय और विदुषक विजयाद्ध पर आकर अपने विमान से रजतशिखर पर उतरते हैं । पवनंजय को अपनी माँ युक्तिमती, जो कि उनका स्वागत करने के लिए आयी थो, से पता चलता है कि अंजना गर्भवती है और अपने माता-पिता के साथ रहने के लिए महेन्द्रपुर गई है | पवनंजय अब सर्वप्रथम महेन्द्रपुर जाकर अंजना से मिलने का निश्चय करता है । कालमेघ नामक हाथी पर सवार होकर पवनंजय और विदूषक महेन्द्रपुर की ओर प्रस्थान करते हैं । रास्ते में घे सरोवणसरसी के किनारे ठहरते हैं । सरोवणसरसी नाभिग्निी पर स्थित है । पवनंजय को एक वनचर तथा उसकी पल्ली मिलती है । उनके बर्णन से वे निश्चय करते हैं कि अंजना और वसन्तमाला एक भयानक दिखाई देने वाले व्यक्ति के साथ महेन्द्रपुर की ओर गई हैं । यह व्यक्ति केतुमती के निर्देशानुसार उन्हें महेन्द्रपुर ले जाना चाहता था । अंजना ने अपने माता-पिता के यहां जाने से मना कर दिया तथा वन्य क्षेत्र में रहना पसन्द किया । वह और उसकी सखी मातङ्ग मालिनी बन में प्रविष्ट हो गई हैं । यह सुनकर पवनजय मूर्छित हो जाता है। पुनः चेतना आने पर वह अपनी प्रिय पत्नी के लिए बिलाप करता है । वह अत्यधिक तनावग्रस्त हो जाता है और उसी वन में प्रविष्ट होता है, जहाँ अंजना गयी है। वह विदूषक को विजयाई पर्वत से विद्या गरे को अंजना की खोज के लिए बुलाने हेतु भेजता है । वह अपने हाथो कालमेघ के साथ गहन वन में प्रविष्ट हो जाता है। छठा अङ्क गन्धर्वराज मणिचूड तथा उसकी पत्नी रत्नचूद्धा से ज्ञात होता है कि अंजना उनके संरक्षण में रह रही है तथा उसने एक पुत्र को जन्म दिया है । वह अपने पति के वियोग के कारण अत्यधिक दुःखो है । पवनंजब, जो कि अंजना के वियोग में पागल हो गया है, माङ्गमालिनी वन में घूम रहा है। वह चेतन और अचेतन सभी वस्तुओं से अंजना का समाचार देने की प्रार्थना करता है । किसी जानकारी के अभाव में अत्यधिक हताश होकर वह किसी चन्दन वृक्ष के नीचे बैठ जाता है । उसकी वाणी अवरुद्ध हो गयी है तथा आँखें आँसुओं से भीगी हुई हैं तथा मन अत्यधिक घबड़ाया हुआ और तनावग्रस्त है । प्रतिसूर्य, जिसे प्रहलाद ने पवनंजय की खोज में भेजा था, उसे मकरन्द वाटिका के किनारे की लताओं के बीच पाते हैं ! वह गहरा ध्यान लगाए हुए था, उसके नेत्र बन्द थे तथा शरीर भावनाओं के कारण रोमाञ्चित हो रहा था । प्रतिसूर्य यह निश्चय कर लेता है कि स्थिति में केवल अंजना ही पवनंजय को प्रसन्न कर सकती है तथा उसकी चेतना वापिस आ सकती है। अत; वह घर वापिस आता है तथा अंजना और वसन्तमाला (जो कि उसके साथ रह रही थीं) को भेजता है । चन्दन लताओं के मध्य प्रविष्ट हुए पवनंजय को देखकर अंजना उसके समीप शीघ्रता से जाकर उसका आलमिन कर लेती है । एवनंजय अंजना को देखकर अत्यधिक प्रसत्र होता है । प्रतिसूर्य जो कि मणिचूड़ को पवनंजय के मिलने का समाचार देने गया हुआ था, अब यवनंजय से मिलने आता है । पवनंजय अपनी प्रिय पत्नी के मामा से मिलकर अत्यधिक प्रसन्न होते हैं।
SR No.090049
Book TitleAnjana Pavananjaynatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size1 MB
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