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________________ 18 विदूषक - क्या माननीया आ गई। पवनंजय - (देखकर) मञ्जरों की आवाज के लोभ से हंसों ने, नि:श्वास की वायु के सुख सौरभ से भौरों ने, करधनी की आवाज के रस से सरसों ने यह प्रमदवन की अधिष्ठात्री देवी ही मानों प्राप्त की है In2|| विदूषक - मित्र, आप उठें, जब तक बकुल नामक उद्यान में प्रवेश करें । पवनंजय - जैसा आप कहें (दोनों उठते हैं) । विदूषक - (समीप में जाकर) आपका कल्गा हो । वसन्तमाला - (समीप में आकर) स्वामी की जय हो। पवनंजय - (अंजना को हाथ में पकड़कर) प्रिये इथर से, इधर से (सभी घूमते हैं) पवनंजय - (देखकर) प्रिवे बकुल नामक उधान की उत्कृष्ट लक्ष्मी को देखो। क्योंकियह नवीन बकुल आज पुष्पों से विद्यारियों के कुरले के आसव के सिंचन रूप दोहले के रसास्वादन से उस सौरभ को धारण कर रहा है । गीले महावर से रंगे चरणकमल से सत्कार को प्राप्त लाल अशोक का वृक्ष फूलों से उसकी लालिमा की शोभा रूप गुण को धारण कर रहा है ||13|| मित्र चित्रमण्डप को ही चलते हैं । तो इस समय उसी की ही चरण चौकी का मार्ग बतलाइए । विदूषक - इधर से (घूमते हैं) विदूषक - (सामने निर्देश कर) मित्र, यह चित्रमण्डप है । इसके समीप चलते हैं । (सभी प्रवेश का अभिनय करते हैं) परून्तमाला - स्वामी, यह नए खिले हुए पुस्मों के पराग से स्वच्छु रेशमी वस्त्र के चादर से युक्त शय्या है । स्वामी इसे अलङ्कत करें। (सभी यथायोग्य बैठते हैं) पवनंजय - (स्पर्श का अभिनय कर) . प्रिये ! तत्क्षण फूली हुई बकुल की कलियों से निकली हुई मदिरा के कणों को ले जाने वाली सुन्दर प्रमरी का यह मधुर गीत है । तुम्हारे तत्क्षण गमन के थकान से उत्पन्न पसीने को हरने वाला ठंडा मलयपवन मन्द-मन्द चल रहा है 1174|| विदूषक - सुख से सेव्य यह प्रदेश मानों आँखों को घुमा रहा है । वसन्तमाला - स्वामी, यह आर्यप्रहसित इस समय बैठे-बैठे अत्यधिक ऊँधने के कारण अश्वशाला के बन्दर की लीला का अनुसरण कर रहा है । (अंजना और पवनंजय मुस्कराकर देखते हैं) वसन्तमाला - क्या यह आकाश में जुगाली का अभ्यास कर रहा है । विदूषक - (स्वप्न देखता है) माननीया, ये लड़ बड़े स्वादिष्ट हैं। (सभी हंसते हैं ।) विदूषक - (गिरता हुआ जागकर और बैठकर लापूर्वक) हे मित्र, अकारण क्यों हँस
SR No.090049
Book TitleAnjana Pavananjaynatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size1 MB
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