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[अहिंसा को विजय
उन्होंने स्पष्ट कहा कि हम यहाँ से कहीं नहीं जा सकते । यही नहीं, हम इस घोर हिंसा को भो रोकने का भरसक प्रयत्न करेंने यह भी उन्होंने अपना दृढ संकल्प महेन्द्र कुमार को सुनाया। किस उपाय से यह कार्य बन्द करना है, किस मार्म को अपनाना होगा, किस प्रकार प्रारम्भ करना होगा और किस प्रकार आन्दोलन सफल होगा यह सब उपाय हम पर्युषण के अन्तिम दिवस घोषित करेंगे यह भी प्राचार्य श्री ने महेन्द्र युवराज को बताया । महाराज श्री का यह एकान्त दृढ़ निश्चय सुनकर महेन्द्र को अत्यन्त आनन्द हुया । किन्तु यह योजना किस प्रकार कितनी सफल होगी यह महेन्द्र को शंका होने लगी। वह रथ में बैठकर भो यही विचार करता जा रहा था। उसके मस्तिष्क में यही प्रश्न घमड़ रहा था ।
महेन्द्र राजकुमार का रथ चला जा रहा था । मल्लिपुर की सीमा पार करते न करते एक रथ मल्लिपुर की ओर से आता हया दोखा । यह मल्लिपुर के बाहर निकल कर कालीमाता के मन्दिर की ओर जाने वाले कर्णमार्ग पर दौइने लगा । महेन्द्र ने यह सोचकर कि संभवतः इस रथ में सवार हो पद्मनाभ राजा स्वयं देवी के दर्शनों को पधार रहे हैं, अपने सारथी को धीमेधीमे रथ चलाने की प्राज्ञा दी । इसका कारण यह था कि यदि रास्ता में राजा से भेंट हो जाय तो इस विषय में उससे कुछ विचार-विमर्श करना चाहिए । कुछ ही समयानन्तर दह रथ सामने पाया और महेन्द्र की अपेक्षानुसार दोनों का प्रामना-सामना हो गया। दोनों की भेंट तो हुयी परन्तु उस रथ में राजा नहीं अपितु कोई राज स्त्रियाँ हैं ऐसा उसे दिखाई दिया । बात यह थी कि पद्मनाभ राजा की पुत्री मगावती और उसकी मातेश्वरी मुरादेवो दोनों ही देवी के दर्शनों को निकलो थीं । पहाड की ओर से प्राता हुआ रथ किसका है ? क्यों यह धीरे-धीरे चला आ रहा है ? यह जानने की उत्सूकता उनको भी हो रही थी । उनका किसी का भी एक दूसरे से परिचय नहीं था । तो भो विचक्षणबुद्धि राजकुमार महेन्द्र ने अनुमान लगाया कि ये देवी के मन्दिर की ओर जानेवाली स्त्रियाँ राजकन्या व राजरानी होना चाहिए। दोनों रथ प्रति निकट आमने-सामने आने पर मगावती ने गर्दन ऊपर कर उधर देखा, महेन्द्र भी इधर ही देख रहा था। दोनों को दृष्टि का मिलाप हुआ। एक ही क्षण ! मिलते ही ममावतो ने अपनी दृष्टि नीचे कर लो। पलभर में दोनों रथ एक दूसरे को पार कर दूर जाने लगे । इस रथ में सवार कोई राजपुत्र है, यह मुनि के दर्शन कर आया होगा, इस प्रकार