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अहिंसा की विजय पर वे बोल रहे थे कि घोड़ों की टाप की आवाज सुनाई पड़ने लगी, सहसा चौके और सबकी दृष्टि उधर ही फिर गई । वा हर देखा कि एक चार घोड़ों का सुन्दर रथ मण्डप के समीप आकर ठहरा । रथ से एक तरुण राजकुमार नीचे उत्तरा, वह सीधा मण्डप में आया और उसने बड़ी भक्ति, श्रद्धा-एवं विनय से गुरु चरणों में नमन किया, दर्शन किये और महाराज श्री का आशीर्वाद लेकर उनके चबूतरे के पास ही एक और उपदेश सुनने को शान्त मन से वंठ गया। यह राजपत्र कौन ? इस विषय में लोगों के मन में कोतूहल हुआ। उसी समय आचार्य श्री का उपदेश प्रारम्भ हुा । सभी लोगों का लक्ष पून: उधर ही हो गया । अहिंसा किस प्रकार पालन करना चाहिए। गहस्थों की अहिंसा की मर्यादा क्या है, मुनियों की अहिंसा किस श्रेशि की है और राजघराने की अहिंसा किस सीमा की है इस विषय का विवेचन इतनी गम्भीरता से किया कि लोगों का मन दया धर्म से उमड़ पड़ा । बहुत लोगों को अपने हिंसाकर्म का पश्चात्ताप होने लगा । कितनों ने आगे कभी हिंसा नहीं करने की प्रतिज्ञा की । और जो अहिंसावादी बने रहे उनकी अहिंसा धर्म पर विशेष श्रद्धा, और प्रगाढ आस्था जम गई। महाराज श्री का उपदेश समारत हुआ । कितने ही स्त्री पुरुष उनके दर्शन कर जाने लगे । तथा कुछ लोग "यह राजकुमार कौन है ?' इमे अवगत करने के लिए वहीं पास में खड़े हो गये। रथ के पास भी बहुत लोगों का जमघट लग गया । बहुत से लोग जब निकल कर चले गये तब वह राजकुमार महाराजजी के पास विनयावनत हो कुछ कहता हया बैठ गया। बहुत देर के बाद पुनः एक बार मुनिराज के दर्शन कर वह राजकुमार मण्डप से निकल कर बाहर आये और रथ में सवार होते ही रथ वेग मे चलने लगा। मल्लिपुर की ओर जाने वाले लोगों को कुछ थोडी बहुत जानकारी हो गई वही चर्चा फैल गयो । श्रोडे ही समय में राजकुमार के बारे में जानकारी हो गई। जिन लोगों ने प्राचार्य महाराज और राजकुमार का बार्तालाप सुना था उन्होंने सभी लोगों को स्पष्ट विस्तार पूर्वक समझा दिया । इस प्रकार सर्व जनता को सही हकीकत ज्ञात हो गई।
वह राजकुमार कौन था ? पाठक भी यह जानने को उत्सुक होंगे ? तो निधे । मल्लिपुर से लगभग १५-२० (पन्द्रह-बीस) मोल दूर एक चम्पा नगर था। वहां का राजा जैन धर्मावलम्बो कर्णदेव था, उन्हीं का यह शहजादा यह राजकुमार था। ये परिवार सहित मुनिभक्त थे ।