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हष्टि
भैंट-3
श्रावण मास गया । माद्रपद मास प्रारम्भ हआ । सर्वत्र हरियाली छा गई । पहाड पर छायो हरियाली नवीन फूलों की बहार, उसके मध्य स्थित जिन भवन अपूर्व शोभा पा रहा था। मन्दार पहाड यथा नाम तथा गुण प्रतीत होने लगा । इस समय का रमणीय दृश्य वस्तुतः अवर्णनीय था । पहाड़ के मार्ग में चट्टानों को चीर कर चार-पांच गुफाये निमित्त थीं। इन्हीं में से एक मृफा में आचार्य श्री ने चातुर्मास स्थापित किया था। वहीं वास्तव्य बना कर रहते थे । उस गुफा के सामने एक विशाल-सुविस्तृत मण्डप था ! श्री १०८ आचार्य महाराज इसी मण्डप में एक स्वच्छ शिला पर आसीन हो धर्मबन्धुओं को हितोपदेश दिया करते थे । हजारों भध्य पुण्डरीक एकत्र हो उनका मघर धर्मामृत पान करने आते थे। शनैः शनैः दस लक्षण पर्व निकट प्रा पहुँचा । आचार्य जी के मोजाजनों की संख्या भी बहुत अधिक बढ़ गई । भाद्रपद शुक्ला पञ्चमी का दिन आया । पहाड पर स्थित मल्लिनाथ जिनालय में आज विशेष वैभव से पूजा प्रारम्भ हुई । पञ्चामृताभिषेक पूर्वक जय जयकार करते लोग अति आनन्द से पूजा कर रहे थे। इधर गुफा के सामने मण्डप में भी संकड़ों लोग जम गये थे। पर्वत पर मुनिराज के दर्शनों का खाभ होगा । इस विचार से दूर-दूर से लोग आये थे । उनमें से कितने हो लोग श्री मल्लिनाथ भगवान के दर्शन कर मुनि दर्शन को आ रहे थे । गुहा के सामने मण्डप के मध्य एक पत्थर का चोकोर चबूतरा था। उसो पर प्राचार्य श्री विराजमान थे। एक ओर पुरुष बैठे थे और दूसरी ओर स्त्रियाँ स्थिर चित्त से उनका उपदेश सुनने को जमी थीं। पर्युषण पर्व का प्रथम दिवस था । अतः प्रथम प्राचार्य श्री ने पर्व का परिचय का विवेचन किया, पूनः प्रथम 'क्षमा धर्म की खुब बारीकी से व्याख्या की। भली जनता मद्गद हो गई। मानों खोई सम्पत्ति उन्हें मिल गई।
उत्तम क्षमा धर्म का अर्थ क्या है ? उसका पालन किस प्रकार करना ? इन प्रश्नों का विवेचन करते हुए प्रशंगानुसार उन्होंने अहिंसा धर्म का भी थोडा सा परिचय रूप उपदेश दिया । अहिंसा का महत्व क्या है ? इस विषय