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हिंसा को विजय ]
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किया | जो हो अन्याय, अत्याचार अनीति और दुष्कर्म भी अधिक नहीं चला करती । पाप का घडा भी भरता है तो फूटता ही है । कोई न कोई सहज कारण प्रतीकार करने वाला होता है । अन्याय का सर्वनाश होता है। इस न्यायानुसार मल्लिपुर का अनर्थकारी हिंसाकाण्ड का भी अन्त प्रति नजदीक या गया है ऐसेचिन्ह दिखाई पड़ने लगे । दीपक बुझने को होता है तो अपना पूरा प्रकाश दिखाता है। इसी प्रकार यह हिंसाकाण्ड भी अन्तिम सीमा पर था । पर अब बुझने वाला है यह चिन्ह भी आ गया। इसका कारण था कि इस वर्ष श्री १०८ आचार्य अमरकीर्ति जी महाराज का चातुर्मास यही स्थापित हुआ था वे बहुत विद्वान और प्रभावशाली मुनीश्वर थे । उनका तपश्चर्या की शक्ति भी अलौकिक थी। उनका उपदेश जादूभरा था। लोगों के मन पर उसकी अत्यन्त शीघ्र अमिट छाप पडती थी ।
विहार करते-करते जिस समय आचार्य श्री अमरकीति जी मल्लिपुर राज्य में आये उस समय अनेकों धर्मभीरुमों ने जो उनके प्रभाव और तपोवल को नहीं जानते थे, उधर नहीं आने की प्रार्थना की थी। परन्तु एक राजा ही अहिंसा धर्म का विरोधी हो गया है। हिंसामार्ग पकट कर वह अधर्म प्रचार कर रहा है। इससे जैन मुनी वहाँ नहीं जाना चाहिए यह बात आचार्य श्री को रुचिकर नहीं हुयो । एक जन धर्मावलम्बी अहिंसा परमोधर्म परित्याग कर सर्वत्र हिंसा रूप महापाप का प्रचार-प्रसार करे यह भला सत्य, अहिंसा के अवतार महामुनिराज किस प्रकार सहन करते ? उन्होंने निश्चय किया था कि मैं सत्प्रयत्न कर राजा को सन्मार्ग पर लाऊंगा, पूर्णतः इस चौदह वर्ष से प्रचलित प्रसारित मूक प्राणीबंध प्रथा को आमूल-चूल नष्ट करूंगा ऐसा उन्हें पूरणे आत्मविश्वास था । इस कालीमाता का नाम निशान धोकर रहूंगा ऐसा उन्होंने दृढ निश्चय किया था। यही कारण था कि उन्होंने किसी को प्रार्थना, बात को नहीं सुनकर नहीं मानकर इच्छापूर्वक मल्लिपुर में ही चातुर्मास स्थापना की थी । जैन मुनिराज का आगमन हुआ जानकर कितने ही श्रावकों को परमानन्द हुआ, परम सन्तोष हुआ । उन्होंने मुनिराज के चरणों में व्रत भी धारण किया कि हम पूर्ववत् श्रहिंसा धर्म ही पालन करेंगे। हिंसा का आश्रय कभी नही लेंगे ।
हिंसा धर्म का व्यापार बढने लगा | आषाढ और श्रावण मास के अन्दर ही अन्दर आचार्य श्री के श्रोताओं की अच्छी भीड़ जमने लगी । उपदेश सुनकर उनका परिणाम बदल गया । दया, ममता और करुणा का