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चतुश्चत्वारिंशत्तमं पर्व
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शस्त्रसंमिन्नसर्वाङ्गमन्तको नेतुमागतः । कान्ता चिन्तापरं कन्तुस्त दस्तादहृतापरम् ॥३०३॥ कण्ठे 'चालिङ्गितः प्रेमशोकाभ्यां प्रियया परः । ध्यात्वा तां त्यनदेहोऽगात् निर्वाणं सव्रणस्तया ॥३०॥ श्वः स्वर्ग किं किमत्रैव संगमो नौ न संशयः । तत्र त्वं बहकान्तोऽदा रमऽन्यन्याह सव्रतम् ॥३०५॥ अत्र वाऽमुत्र वासोऽस्तु किं तया चिन्तयावयोः। वियोगः क्वापि नास्तीति कान्ता कान्तमतर्पयत ॥३०६॥ सवतो वीरलक्ष्मी च कीर्ति चैहि चिरायुषा । हन्तुं मामेव कामोऽयमिति कान्नाऽवदद्वया ॥२०॥ जयस्य विजयः प्राणैस्तवैवैतद् विनिश्चितम् । 'सव्रतावद्य यास्यावो दिवमिन्यजीत परा ॥३०८॥ शराः पौप्पास्तव त्वं च संयुकवतिशीतगः । तत्र विज्ञातसारोऽसि पुरुषेभ्यो भयं तव ॥३०९॥ आयसाः सायकाः काम त्वमप्यस्माकमन्तकः । इति कामं समुद्दिश्य खण्डिताः स्वगतं "जगुः ॥३१॥ सा रात्रिरिति सल्लापै प्रेमप्राणैरनीयत । तावत संध्याऽगता रागाद् राक्षसीवेक्षितुं रणम् ॥३११॥
अपनी स्त्रीको अपने हृदयमें स्थित मानकर तथा हाय, यह बेचारी इस बाणसे व्यर्थ ही मरी जा रही है ऐसा समझकर शीघ्र ही अपने प्राण छोड़ दिये थे ॥३०२।। जिसका सब शरीर शस्त्रोंसे छिन्न-भिन्न हो गया है ऐसे किसी अन्य योद्धाको यमराज लेनेके लिए आ गया था परन्तु स्त्रीको चिन्तामें लगे हुए उसे कामदेवने यमराजके हाथसे छुड़ा लिया था ॥३०३॥ प्रेम और शोकके कारण अपनी स्त्रीके द्वारा गलेसे आलिंगन किया हुआ कोई घावसहित योद्धा उसी प्रियाका ध्यान कर तथा शरीर छोड़ कर उसीके साथ मर गया ॥३०४।। किसी योद्धाने व्रत धारण कर लिये थे इसलिए उसकी स्त्री उससे कह रही थी कि कल स्वर्गमें न जाने क्या-क्या होगा ? इसमें कुछ भी संशय नहीं है कि हम दोनोंका समागम यहाँ हो सकता है, चूँकि तुम्हें स्वर्गमें बहुत-सी स्त्रियाँ मिल जायेंगी इसलिए मैं आज यहाँ ही क्रीड़ा करूँगी ॥३०५॥ हम दोनोंका निवास चाहे यहाँ हो, चाहे परलोकमें हो, उसकी चिन्ता ही नहीं करनी चाहिए। क्योंकि हम लोगोंका वियोग तो कहीं भी नहीं हो सकता है इस प्रकार कहती हुई कोई स्त्री अपने पतिको सन्तुष्ट कर रही थी ॥३०६॥ कोई स्त्री क्रोधपूर्वक अपने पतिसे कह रही थी कि तुम तो व्रत धारण कर वीर लक्ष्मी और कोतिको प्राप्त होओ- उनके पास जाओ, दीर्घ आय होनेके कारण यह कामदेव मुझे ही मारे ॥३०७॥ कोई स्त्री अपने पतिसे कह रही थी कि यह निश्चित है कि जयकुमारकी जीत तेरे ही प्राणोंसे होगी और व्रतोंके धारण करनेवाले हम दोनों ही आज स्वर्ग जावेंगे ॥३०८॥ खण्डिता स्त्रियाँ कामदेवको उद्देश्य कर अपने मनमें कह रही थीं कि अरे काम, संयोगी पुरुषोंपर पड़ते समय तेरे बाण फूलोंके हो जाते हैं और तू भी बहुत ठण्डा हो जाता है, उन पुरुषोंके पास तेरे बलकी सब परख हो जाती है, वास्तवमें तू पुरुषोंसे डरता है परन्तु हम स्त्रियोंपर पड़ते समय तेरे बाण लोहेके ही रहते हैं, और तू भी यमराज बन जाता है । भावार्थ - तू पुरुषोंको उतना दुःखी नहीं करता जितना कि हम स्त्रियोंको करता है ॥३०६३१०॥ प्रेमरूपी प्राणोंको धारण करनेवाले स्त्री-पुरुषोंने इस प्रकारकी बातचीतके द्वारा ज्यों ही वह रात्रि पूर्ण की त्यों ही रागसे संग्राम देखनेके लिए आयी हुई राक्षसीके समान सन्ध्या ( सवेरेकी लाली ) आ गयो ॥३११॥
१ कण्ठेनालिङ्गितः इ०, अ०, स०, प०। २ मरणम् । ३ अनन्तरागामिदिने । ४ स्यादिति न जाने इति संबन्धः । ५ आवयोः । ६ स्वर्गे। ७ क्रीडामि । ८ स्वर्गे। ९ सनियमः । १० गच्छ । ११ सनियमावावाम् । १२ संगतेषु स्त्रीपुरुषेषु । १३ अतिशयेन सुखहेतुः । १४ संयुक्तस्त्रीपुरुषेषु । १५ अयस्संबनिधनः । १६ पुरुषवियुक्ताः । १७ स्वाभिप्रायम् । १८ भणन्ति स्म । १९ मिथो भाषणः । २० प्रेम इव प्राणा येषां तैः ।