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________________ १९२ आदिपुराणम् तमानयानुनीयेह नय मां वा तदन्तिकम् । त्वदधीना मम प्राणाः प्राणेशे बहुवल्लभे ॥२०॥ इत्यनङ्गातुरा काचित् संदिशन्ती सखीं मिथः । भुजोपरोधमाश्लेषि पत्या प्रत्याखण्डिता ॥२०॥ राज्ये मनोभवस्यास्मिन् स्वैरं रंरम्यतामिति । कामिनीकलकांचीभिरुदघोषीव घोषणा ॥२०३॥ कर्णोत्पलनिलीनालिकुलकोलाहलस्वनैः । उपजेपे किमु स्त्रीणां कर्णजाहे मनोभुवा ॥२०॥ स्तनाङ्गरागसंमदर्दी परिरम्भोऽतिनिर्दयः । ववृधे कामिवृन्देषु रभसश्च कचग्रहः ॥२०५॥ आरक्तकलुषा दृष्टिमुखमापाटलाधरम् । रतान्ते कामिनामासीत् सीत्कृतं वाऽसकृत्कृतम् ॥२०६॥ पुष्पसंमर्दसुरभीरास्रस्तजघनांशुकाम् । संभोगावसतौ शय्या मिथुनान्यधिशेरत ॥२०७ ॥ कैश्चिद् वीरभटै विरणारम्मकृतोत्सवैः । प्रियोपरोधान्मन्देच्छैरप्यासेवि रतोत्सवः ॥२०॥ केचित् कीर्त्यङ्गनासंगमुखसंगकृतस्पृहाः । प्रियाङ्गनापरिष्वङ्गमङ्गीचक्रुर्न मानिनः ॥२०६॥ निर्जितारिभटै ग्या प्रिया मास्मामि रन्यथा । इति जातिभटाः केचिन्न भेजें शयनान्यपि ॥२०॥ शरतल्पगतानल्पसुखसंकल्पतः परे । नाभ्यनन्दन् प्रियातल्लमनल्पेच्छा भटोत्तमाः ॥२११॥ स्वकामिन भिरारब्धवीरालापैटैः परैः । विभावरी विभाताऽपि सा नावेदि रणोन्मुखैः ॥२२॥ सी रही है ॥२००। इसलिए मनाकर या तो उन्हें यहाँ ले आ या मुझे ही उनके पास ले चल, यह ठीक है कि प्राणपतिके अनेक स्त्रियाँ हैं इसलिए उन्हें मेरी परवाह नहीं है किन्तु मेरे प्राण तो उन्हींके अधीन हैं ॥२०१॥ इस प्रकार कामदेवसे पीड़ित होकर कोई स्त्री अपनी सखीसे सन्देश कह ही रही थी कि इतने में उस नवीन विरहिणी स्त्रीको पास ही छिपे हुए उसके पतिने दोनों भुजाओंसे पकड़कर परस्पर आलिंगन किया ॥२०२॥ उस समय मनोहर शब्द करती हुई स्त्रियोंकी करधनियाँ मानो यही घोषणा कर रही थीं कि आप लोग कामदेवके इस राज्य में इच्छानुसार क्रीड़ा करो ॥२०३।। उन स्त्रियोंके कर्णफूलके कमलोंमें छिपे हुए भ्रमरोंके समूह कोलाहल कर रहे थे और उससे ऐसा जान पड़ता था मानो कामदेव स्त्रियोंके कानोंके समीप लगकर कुछ गुप्त बातें ही कर रहा हो ॥२०४।। उस समय कामी लोगोंके समूहमें स्त्रियोंके स्तनोंपर लगे हुए लेपको मर्दन करनेवाला और अत्यन्त निर्दय आलिंगन बढ़ रहा था तथा वेगपूर्वक केशोंकी पकड़ा-पकड़ी भी बढ़ रही थी ॥२०५॥ सम्भोगके बाद कामी लोगोंके नेत्र कुछ-कुछ लाल और कलुषित हो गये थे, मुख कुछ-कुछ गुलाबी अधरोंसे युक्त हो गया था तथा उससे सी-सी शब्द भी बार-बार हो रहा था ॥२०६॥ सम्भोग-क्रियाके समाप्त होनेपर स्त्री और पुरुष दोनों ही उन शय्याओंपर सो गये जो कि फूलोंके सम्मर्दसे सुगन्धित हो रही थीं और जिनपर खुलकर अधोवस्त्र पड़े हुए थे ॥२०७॥ जिन्हें होनेवाले युद्धके प्रारम्भमें बड़ा आनन्द आ रहा था ऐसे कितने ही शूरवीर योद्धाओंने इच्छा न रहते हुए भी अपनी प्यारी स्त्रियोंके आग्रहसे सम्भोग सुखका अनुभव किया था ॥२०८। कीर्तिरूपी स्त्रीके समागमसे उत्पन्न होनेवाले सुखमें जिनकी इच्छा लग रही है ऐसे कितने ही मानो योद्धाओंने अपनी प्यारी स्त्रियोंका आलिंगन स्वीकार नहीं किया था ॥२०९॥ 'जब हम लोग शत्रुके योद्धाओंको जीत लेंगे तभी प्रियाका उपभोग करेंगे अन्यथा नहीं' ऐसी प्रतिज्ञा कर कितने ही स्वाभाविक शूरवीर शय्याओंपर ही नहीं गये थे ॥२१०॥ बड़ी-बड़ो इच्छाओंको धारण करनेवाले कितने ही उत्तम शूरवीरोंने बाणोंकी शय्यापर सोनेसे प्राप्त हुए भारी सुखका संकल्प किया था इसलिए ही उन्होंने प्यारी स्त्रियोंकी शय्यापर सोना अच्छा नहीं समझा था ॥२११॥ जिन्होंने अपनी स्त्रियोंके साथ अनेक शूरवीरोंकी कथाएँ कहना प्रारम्भ किया है ऐसे युद्धके १ बहुस्त्रीके सति । २ रहसि । ३ नूतनवियुक्ता। ४ रहो बभाषे। भेदकुमन्त्रः सूचितः । ५ कर्णमूले । ६ ईषदरुण । ७ सुरतावसाने । नास्माभि-ल०, द०, अ०, ५०, स०, इ० । ९ प्रभातापि ।
SR No.090011
Book TitleAdi Puran Part 2
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2011
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size21 MB
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