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## Chapter Twenty-Five
**616**
* **Maha-dhvara-dhara** (525) - Holder of the great sacrificial fire, due to being the holder of the vast sacrificial fire.
* **Dhuryo** (526) - Steadfast, due to bearing the burden of the entire realm of action.
* **Mahoudaryo** (527) - Extremely generous, due to being extremely generous.
* **Maheshta-vak** (528) - Possessor of the best words, due to being endowed with the best words.
* **Mahatma** (529) - Great soul, due to being the holder of a great soul.
* **Mahasan-dhama** (530) - Abode of all brilliance, due to being the abode of all brilliance.
* **Maharshi** (531) - Great sage, due to being the chief among sages.
* **Mahito-daya** (532) - Possessor of a noble birth, due to being the possessor of a noble birth.
**617**
* **Maha-klesha-ankusha** (533) - Great bridle of afflictions, due to being like a bridle for destroying great afflictions.
* **Shuro** (534) - Hero, due to being a valiant hero in conquering enemies of karma.
* **Maha-bhuta-pati** (535) - Lord of the great elements, due to being the lord of great beings like the Ganadharas.
* **Guru** (536) - Teacher, due to being the best in all three realms.
* **Maha-parakrama** (537) - Possessor of great power, due to being the possessor of great power.
* **Ananta** (538) - Infinite, due to being infinite.
* **Maha-krodha-ripu** (539) - Great enemy of anger, due to being the great enemy of anger.
* **Vashi** (540) - Subduer, due to subduing all the senses.
**618**
* **Maha-bhava-abdhi-santari** (541) - Savior from the ocean of existence, due to leading across the ocean of existence.
* **Maha-moha-adri-sudana** (542) - Destroyer of the mountain of delusion, due to destroying the mountain of delusion.
* **Maha-guna-akara** (543) - Mine of great virtues, due to being the mine of great virtues like right faith.
* **Kshata** (544) - Patient, due to conquering passions like anger.
* **Maha-yogi-ishvara** (545) - Lord of great yogis, due to being the lord of great yogis and ascetics.
* **Shami** (546) - Peaceful, due to being extremely peaceful.
**619**
* **Maha-dhyana-pati** (547) - Lord of great meditation, due to being the lord of great meditation like white meditation.
* **Dhyata-maha-dharma** (548) - Contemplator of great dharma, due to contemplating great dharma like non-violence.
* **Maha-vrata** (549) - Possessor of great vows, due to possessing great vows.
* **Maha-karma-ariha** (550) - Destroyer of great karmic enemies, due to destroying great karmic enemies.
* **Atma-jna**
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पञ्चविंशतितमं पर्व
६१६ 'महाध्व(धरो धुर्यो महौदार्यों महिष्ठवाक् । महात्मा महसां धाम महर्षिर्म हितोदयः ॥१५९।। महाक्लेशाङ्कुशः शूरो महाभूतपतिर्गुरुः । महापराक्रमोऽनन्तो महाक्रोधरिपुर्वशी ॥१६०॥ महाभवाब्धिसन्तारी महामोहाद्रिसूदनः । महागुणाकरः क्षान्तो महायोगीश्वरः शमी ॥१६१॥ महाध्यानपतिर्ध्यातमहाधर्मा महाव्रतः । "महाकर्मारिहात्मज्ञो महादेवो महेशिता ॥१६२॥ सर्वक्लेशापहः साधुः सर्वदोषहरो हरः । असहयेयोऽप्रमेयात्गः शमारमा प्रशमाकरः ॥ १६३॥ सर्वयोगीश्वरोऽचिन्स्यः श्रुतारमा विष्टरश्रवाः । दान्तारमा दमतीर्थेशो योगात्मा ज्ञानसर्वगः ॥१६॥
हैं ।।१५८।। ज्ञानरूपी विशाल यज्ञके धारक होनेसे महाध्वरधर ५२५, कर्मभूमिका समस्त भार सँभालने अथवा सर्वश्रेष्ठ होनेके कारण धुर्य ५२६, अतिशय उदार होनेसे महौदार्य ५२७, श्रेष्ठ वचनोंसे युक्त होनेके कारण महेष्टवाक ५२८, महान आत्माके धारक होनेसे महात्मा ५२९. समस्त तेजके स्थान होनेसे महसांधाम ५३०, ऋषियोंमें प्रधान होनेसे महर्षि ५३१ और प्रशस्त जन्मके धारक होनेसे महितोदय ५३२ कहलाते हैं ॥१५९।। बड़े-बड़े क्लेशोंको नष्ट करनेके लिए अंकुशके समान हैं इसलिए महाक्लेशांकुश ५३३ कहलाते हैं, कर्मरूपी शत्रुओंका झय करनेमें शूर-वीर हैं इसलिए शूर ५३४ कहे जाते हैं, गणधर आदि बड़े-बड़े प्राणियोंके स्वामी हैं इसलिए महाभूतपति ५३५ कहे जाते हैं, तीनों लोकोंमें श्रेष्ठ हैं इसलिए गुरु ५३६ कहलाते है, विशाल पराक्रमके धारक हैं इसलिए महापराक्रम ५३७ कहे जाते हैं, अन्तरहित होनेसे अनन्त ५३८ हैं, क्रोधके बड़े भारी शत्रु होनेसे महाक्रोधरिपु ५३९ कहे जाते हैं और समस्त इन्द्रियोंको वश कर लेनेसे वशी ५४० कहलाते हैं ॥१६०॥ संसाररूपी महासमुद्रसे पार कर देनेके कारण महाभवाब्धिसन्तारी ५४१, मोहरूपी महाचलके भेदन करनेसे महामोहाद्रिसूदन ५४२, सम्यग्दर्शन आदि बड़े-बड़े गुणोंकी खान होनेसे महागुणाकर ५४३, क्रोधादि कषायोंको जीत लेनेसे क्षान्त ५४४, बड़े-बड़े योगियों-मुनियोंके स्वामी होनेसे महायोगीश्वर ५४५ और अतिशय शान्त परिणामी होनेसे शमी ५४६ कहलाते हैं ॥१६१॥ शुक्लध्यानरूपी महाध्यानके स्वामी होनेसे महाध्यानपति ५४७, अहिंसारूपी महाधर्मका ध्यान करनेसे ध्यातमहाधर्म ५४८, महाव्रतोंको धारण करनेसे महाव्रत ५४९, कर्मरूपी महाशत्रुओंको नष्ट करनेसे महाकर्मारिहा ५५०, आत्मस्वरूपके जानकार होनेसे आत्मज्ञ ५५१, सब देवोंमें प्रधान होनेसे महादेव ५५२ और महान् सामर्थ्यसे सहित होनेके कारण महेशिता ५५३ कहलाते हैं ॥१६२।। सब प्रकारके क्लेशोंको दूर करनेसे सर्वक्लेशापह ५५४, आत्मकल्याण सिद्ध करनेसे साधु ५५५, समस्त दोषोंको दूर करनेसे सर्वदोषहर ५५६, समस्त पापोंको नष्ट करनेके कारण हर ५५७, असंख्यात गुणोंको धारण करनेसे असंख्येय ५५८, अपरिमित शक्तिको धारण करनेसे अप्रमेयात्मा ५५९, शान्तस्वरूप होनेसे शमात्मा ५६० और उत्तम शान्तिकी खान होनेसे प्रशमाकर ५६१ कहलाते हैं ॥१६३।। सब मुनियोंके स्वामी होनेसे सर्वयोगीश्वर ५६२, किसीके चिन्तवनमें न आनेसे अचिन्त्य ५६३, भावश्रुतरूप होनेसे श्रुतात्मा ५६४, तीनों लोकोंके समस्त पदार्थोंको जाननेसे विष्टरश्रवा ५६५, मनको वश करनेसे दान्तात्मा ५६६, संयमरूप तीर्थ के स्वामी होनेके कारण दमतीर्थेश ५६७, योगमय होनेसे योगात्मा ५६८ और
१. महायज्ञधारी। २. धुरन्धरः। ३. गणधरचक्रधरादीनामोशः। ४. नाशकः । ५. शत्रुघ्नः । ६. विष्टं प्रवेशं राति ददातीति विष्टरं विष्टरं श्रवो ज्ञानं यस्य सः । ७. शिक्षितात्मा।