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The Adi Purana states: He is called Sriman 1 because he is accompanied by Lakshmi. He is called Swayambhu 2 because he is self-born, having attained enlightenment without the help of any guru. He is called Vrishabha 3 because he is adorned with Dharma, the bull. He is called Sambhava 4 because he has attained infinite happiness himself and has given happiness to many other beings in the world. He is called Shambhu 5 because he is the giver of supreme bliss. He is called Atmabhū 6 because he has attained this exalted state by himself, or because only a yogi can realize him in his own soul. He is called Swayamprabha 7 because he is self-illuminated. He is called Prabhu 8 because he is powerful or the master of all. He is called Bhoktā 9 because he experiences infinite, self-arising happiness. He is called Vishvabhū 10 because he is present everywhere, not just in knowledge, but also in manifestation through meditation and other practices. He is called Apunarbhava 11 because he will not take birth again in the world. 100. He is called Vishvātmā 12 because all the objects of the world are reflected in his soul. He is called Vishvalokesh 13 because he is the master of all the worlds. He is called Vishvatchakshu 14 because his eyes of knowledge and vision are unobstructed everywhere in the world. He is called Akshara 15 because he is imperishable. He is called Vishvavid 16 because he knows all things. He is called Vishvavidyesha 17 because he is the master of all knowledge. He is called Vishvayoni 18 because he is the cause of the origin of all things, i.e., the teacher. He is called Anashvara 19 because his form is never destroyed. 101. He is called Vishvadrishva 20 because he sees all things. He is called Vibhu 21 because he is present everywhere, not just in knowledge, but also because he is capable of liberating all beings from the world, or because he is endowed with supreme excellence. He is called Dhātā 22 because he liberates worldly beings and places them in the state of liberation, or because he nourishes all beings, or because he creates the path to liberation. He is called Vishvesha 23 because he is the lord of the entire universe. He is called Vishvalochana 24 because he sees all things, or because he is like the eyes of all beings, giving them the right path and advice. He is called Vishvavyaapi 25 because his knowledge is present everywhere, because he knows all the objects of the world. He is called Vidhi 26 because he establishes the appropriate path to liberation. He is called Vedha 27 because he creates the world in the form of Dharma. He is called Shashvata 28 because he is eternally present. He is called Vishvatomukha 29 because his face is seen in all directions in the Samavasarana assemblies, or because he is like water, removing the dirt of sin.
1. He is called Swayamatmana Bhavatīti. 2. He is called Vrisheṇa Dharmeṇa Bhavatīti. 3. He is called Sha Sukhe Bhavatīti. 4. He is called Swayamprakasha. 5. He is called Karana.
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आदिपुराणम् श्रीमान् स्वयं भूव॒षमः शंभवः शंभुरास्मभूः । स्वयंप्रमः प्रभुर्भाक्ता विश्वभूरपुनर्मवः ॥१०॥ विश्वारमा विश्वलोकेशो विश्वतश्चक्षुरक्षरः । विश्वविद् विश्वविद्यशो विश्वयो निरनश्वरः ॥१०१॥ विश्वश्वा विभुर्धाता विश्वेशो विश्वलोचनः । विश्वव्यापी विधिर्वेषाः शाश्वतो विश्वतोमुखः ॥१०२॥
बहिरङ्ग लक्ष्मीसे सहित हैं इसलिए श्रीमान १ कहलाते हैं, आप अपने-आप उत्पन्न हुए हैंकिसी गुरुके उपदेशकी सहायताके बिना अपने-आप ही सम्बुद्ध हुए हैं इसलिए स्वयंभू २ कहलाते हैं, आप वृष अर्थात् धर्मसे सुशोभित हैं इसलिए वृषभ ३ कहलाते हैं, आपके स्वयं अनन्त सुखकी प्राप्ति हुई है तथा आपके द्वारा संसारके अन्य अनेक प्राणियोंको सुख प्राप्त हुआ है इसलिए शंभव ४ कहलाते हैं, आप परमानन्दरूप सुखके देनेवाले हैं इसलिए शंभु ५ कहलाते हैं, आपने यह उत्कृष्ट अवस्था अपने ही द्वारा प्राप्त की है अथवा योगीश्वर अपनी आत्मामें ही आपका साक्षात्कार कर सकते हैं इसलिए आप आत्मभू ६ कहलाते हैं, आप अपने-आप ही प्रकाशमान होते हैं इसलिए स्वयंप्रभ ७ हैं, आप समर्थ अथवा सबके स्वामी हैं इसलिए प्रभु ८ है, अनन्त-आत्मोत्थ सुखका अनुभव करनेवाले हैं इसलिए भोक्ता है ९, केवल ज्ञानकी अपेक्षा सब जगह व्याप्त हैं अथवा ध्यानादिके द्वारा सब जगह प्रत्यक्षरूपसे प्रकट होते हैं इसलिए विश्वभू १० हैं, अब आप पुनः संसार में आकर जन्म धारण नहीं करेंगे इसलिए अपुनर्भव ११ हैं ।।१००॥ संसारके समस्त पदार्थ आपकी आत्मामें प्रतिबिम्बित हो रहे हैं इसलिए आप विश्वात्मा १२ कहलाते हैं, आप समस्त लोकके स्वामी हैं इसलिए विश्वलोकेश १३ कहलाते हैं, आपके ज्ञानदर्शनरूपी नेत्र संसारमें सभी ओर अप्रतिहत हैं इसलिए आप विश्वतश्चक्षु १४ कहलाते हैं, अविनाशी हैं इसलिए अक्षर १५ कहे जाते हैं, समस्त पदार्थोंको जानते हैं इसलिए विश्वविद् १६ कहलाते हैं, समस्त विद्याओंके स्वामी हैं इसलिए विश्वविद्येश १७ कहे जाते हैं, समस्त पदार्थोंकी उत्पत्तिके कारण हैं अर्थात् उपदेश देनेवाले हैं इसलिए विश्वयोनि १८ कहलाते हैं, आपके स्वरूपका कभी नाश नहीं होता इसलिए अनश्वर १९ कहे जाते हैं ।।१०१।। समस्त पदार्थोंको देखनेवाले हैं इसलिए विश्वदृश्वा २० हैं, केवलज्ञानकी अपेक्षा सब जगह व्याप्त हैं अथवा सब जीवोंको संसारसे पार करने में समर्थ हैं अथवा परमोत्कृष्ट विभूतिसे सहित हैं इसलिए विभु २१ हैं, संसारी जीवोंका उद्धार कर उन्हें मोक्षस्थानमें धारण करनेवाले हैं - पहुँचानेवाले हैं अथवा सब जीवोंका पोषण करनेवाले हैं अथवा मोक्षमार्गकी सृष्टि करनेवाले हैं इसलिए धाता २२ कहलाते हैं, समस्त जगत्के ईश्वर हैं इसलिए विश्वेश २३ कहलाते हैं, सब पदार्थोंको देखनेवाले हैं अथवा सबके हित सन्मार्गका उपदेश देनेके कारण सब जीवोंके नेत्रों के समान हैं इसलिए विश्वविलोचन २४ कहे जाते हैं, संसारके समस्त पदार्थोंको जाननेके कारण आपका ज्ञान सब जगह व्याप्त है इसलिए आप विश्वव्यापी २५ कहलाते हैं। आप समीचीन मोक्षमार्गका विधान करनेसे विधि २६ कहलाते हैं। धर्मरूप जगत्की सष्टि करनेवाले है इसलिए वेधा २७ कहलाते हैं, सदा विद्यमान रहते है इसलिए शाश्वत २८ कहे जाते हैं, समवसरण-सभामें आपके मुख चारों दिशाओंसे दिखते हैं अथवा आप विश्वतोमुख अर्थात् जलकी तरह पापरूपी पंकको दूर
१. स्वयमात्मना भवतीति । २. वृषेण धर्मेण भवतीति । ३. शं सुखे भवतीति । ४. स्वयंप्रकाशः । ५. कारणम् ।