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272 Adipurana 'A large, wealthy, shady banyan tree stands before you. Even though it was said, no one went near it, what a wonder!' ||226|| [Spashtaandhakam] 'Your breast is like a pearl necklace, warm, rubbed with sandalwood, and somewhat white, like a forlorn man.' ||227|| [Samanopamam] 'The one who brings joy to the world, who burns the fuel of evil, who is like the color of molten gold, will be born as your son.' ||228|| - [Guda Chaturthakam] 'The conqueror of the world, the conqueror of desire, the refuge of the virtuous, the omniscient, the Tirthankara, the one who has fulfilled his purpose, may your son be victorious.' ||229|| - - - [Niraushtyem] 'May your son, O auspicious one, O faithful wife, show you hundreds of auspicious things and attain a place (moksha) from which there is no return. Therefore, be content.' ||230|| . [Niroshtayameva]
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________________ २७२ आदिपुराणम् 'वटवृक्षः पुरोऽयं ते धनन्छायः स्थितो महान् । इत्युक्तोऽपि न तं घमें श्रितः कोऽपि वदाद्भुतम्॥२२६॥ [स्पष्टान्धकम् ] 'मुक्काहाररुचिः सोमा हरिचन्दनचर्चितः । पापाण्डुरुचिरामाति विरहीव तव स्तनः ॥२२७॥ [समानोपमम् ] जगतां जनितानन्दो निरस्तदुरितेन्धनः । स यः कनकसच्छायो जनिता ते स्तनन्धयः ॥२२॥ ---गूढचतुर्थकम् ]] जगजयी जितानः सतां गतिरनन्तहा । तीर्थकृस्कृतकृत्यश्र जयतात्तनयः स ते ॥२२९॥ - - - ['निरौष्टयम् ] स ते कल्याणि कल्याणशतं संदर्य नन्दनः । यास्यस्य नागतिस्थानं धृति "धेहि ततः सति ॥२३०॥ . [निरोष्टयमेव] लाता है ] ||२२५।। कुछ आदमी कड़कती हुई धूपमें खड़े हुए थे उनसे किसीने कहा कि 'यह तुम्हारे सामने धनी छायावाला बड़ा भारी बड़का वृक्ष खड़ा है' ऐसा कहनेपर भी उनमें से कोई भी वहाँ नहीं गया । हे माता, कहिए यह कैसा आश्चर्य है ? इसके उत्तरमें माताने कहा कि इस श्लोकमें जो 'वटवृक्ष' शब्द है उसकी सन्धि वटो+ऋक्षः' इस प्रकार तोड़ना चाहिए और उसका अर्थ ऐसा करना चाहिए कि 'रे लड़के, तेरे सामने यह मेघके समान कान्तिवाला (काला) बड़ा भारी रीछ (भालू ) बैठा है ऐसा कहनेपर कड़ी धूपमें भी उसके पास कोई मनुष्य नहीं गया तो क्या आश्चर्य है [ यह स्पष्टान्धक श्लोक है ] ॥२२६।। हे माता, आपका स्तन मुक्ताहाररुचि है अर्थात् मोतियोंके हारसे शोभायमान है, उष्णतासे सहित है, सफेद चन्दनसे चर्चित है और कुछ-कुछ सफेद वर्ण है इसलिए किसी विरही मनुष्यके समान जान पड़ता है क्योंकि विरही मनुष्य भी मुक्ताहाररुचि होता है, अर्थात् आहारसे प्रेम छोड़ देता है, काम-ज्वरसम्बन्धी उष्णतासे सहित होता है, शरीरका सन्ताप दूर करनेके लिए चन्दनका लेप लगाये रहता है और विरहको पीडासे कुछ-कुछ सफेद वर्ण हो जाता है। [यह श्लषोपमालंकार है ] IR२७॥ हे माता, तुम्हारे संसारको आनन्द उत्पन्न करनेवाला, कमरूपी इंधनको जलानेवाला और तपाये हुए सुवर्णके समान कान्ति धारण करनेवाला पुत्र उत्पन्न होगा। [यह श्लोक गूदचतुर्थक कहलाता है क्योंकि इस श्लोकके चतुर्थ पादमें जितने अक्षर हैं वे सबके-सब पहलेके तीन पादोंमें आ चुके हैं जैसे 'जगतां जनितानन्दो निरस्तदुरितेन्धनः । संतप्तकनकच्छायो जनिता ते स्तनन्धयः ।।' ] ॥२२८॥ हे माता, आपका वह पुत्र सदा जयवन्त रहे जो कि जगत्को जीतनेवाला है, कामको पराजित करनेवाला है, सज्जनोंका आधार है, सर्वज्ञ है, तीर्थकर है और कृतकृत्य है [ यह निरौष्ठय श्लोक है क्योंकि इसमें ओठसे उच्चारण होनेवाले 'उकार, पवर्ग और उपध्मानीय अक्षर नहीं हैं ] ॥२२९।। हे कल्याणि, हे पतिव्रते, आपका वह पुत्र सैकड़ों कल्याण दिखाकर ऐसे स्थानको (मोक्ष) प्राप्त करेगा जहाँसे पुनरागमन नहीं होता इसलिए आप सन्तोषको प्राप्त होओ [ यह १. वटवृक्षः न्यग्रोधपादपः। पक्षे वटो भो माणवक, ऋक्षः भल्लक: । 'ऋक्षाच्छभल्लभल्लकाः' । २ पर्यनातप: पक्षे मेघच्छायः । ३.निदाघे। ४. मौक्तिकहारकान्तिः। पक्षे त्यक्ताशनरुचिः । ५. जनिता भविष्यति । 'जनिता ते स्तनन्धयः' इति चतुर्थः पाद: प्रथमादित्रिषु पादेषु गूढमास्ते । ६. सन्तप्तकनकच्छायः १०, स०, म०, ल०। ७. सतां गतिः सत्पुरुषाणामाधारः । ८. ओष्ठस्पर्शनमन्तरेण पाट्यम् । ९. मुक्तिस्थानम् । १०. सन्तोषं घर । ११. चेहि स०, म०, ल० ।
SR No.090010
Book TitleAdi Puran Part 1
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2004
Total Pages782
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size27 MB
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