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दशमं पर्व
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भूम्युष्मणा च संतप्ता दुस्सहेनाकुलीकृताः । तमभ्राष्ट्र तिला यवत् निपतन्स्युस्पतन्ति च ॥३७॥ ततस्तेषां निकृन्तन्ति गात्राणि निशितायुधैः । नारकाः परुषकोधास्तर्जयन्तोऽतिभीषणम् ॥३८॥ तेषां छिचानि गात्राणि संधान यान्ति तरक्षणम् । दण्डाहतानि वारीणि यद्विक्षिप्य शल्कशः ॥३९॥ बैरमन्योऽन्यसम्बन्धि निवेद्यानुभवाद् गतम् । दण्डास्तदनुरूपास्ते योजयन्ति परस्परम् ॥४०॥ चोदयन्त्यसुराश्चैनान यूयं युध्यध्वमित्यरम् । संस्मार्य पूर्ववैराणि प्राक्चतुर्थ्याः सुदारुणाः ॥४१॥ वनचनपुटैद्धाः कृन्तन्स्येतान् भयङ्कराः । श्वानश्वानर्जुनाः शूना' रणन्ति नखरैः खरैः ॥४२॥ मूषाकथितताम्रादिरसान् केचित् प्रपायिवाः । प्रयान्ति विलयं सयो रसन्तो विरसस्वनम् ॥४३॥ इक्षुयन्त्रेषु निक्षिप्य पीब्यन्ते खण्डशः कृताः।" उधिकासुच निष्काथ्य नीयन्ते रसता परे ॥४४॥ केचित् स्वान्येक मांसानि खाद्यन्ते बलिभिः परैः। विक्षस्य निशितैः शस्त्रः परमासाशिनः पुरा ॥४५॥ "संदंशकैर्विदार्यास्यं गले पाटिकया बलात् । प्रास्यन्ते तापितांल्लोहपिण्डान् मांसप्रियाः पुरा ॥४६॥
सैषा तव प्रियेत्युच्चैः तप्तायःपुत्रिकां गले । आलिशान्ते बलादन्यैरनलार्चि:कणाचिताम् ॥४७॥ जिसमें उनके शरीरको सब सन्धियाँ छिन्न-भिन्न हो जाती हैं और इस दुःखसे दुःखी होकर वे पापी जीव रोने-चिल्लाने लगते हैं ॥३६॥ वहाँकी भूमिकी असह्य गरमीसे सन्तप्त होकर व्याकुल हुए नारकी गरम भाड़में डाले हुए तिलोंके समान पहले तो उछलते हैं और फिर नीचे गिर पड़ते हैं ॥ ३७॥ वहाँ पड़ते ही अतिशय क्रोधी नारकी भयंकर तर्जना करते हुए तीक्ष्ण शत्रोंसे उन नवीन नारकियोंके शरीरके टुकड़े-टुकड़े कर डालते हैं ।।३८।। जिस प्रकार किसी डण्डेसे ताड़ित हुआ जल बूंद-बूंद होकर बिखर जाता है और फिर क्षण-भरमें मिलकर एक हो जाता है उसी प्रकार उन नारकियोंका शरीर भी हथियारोंके प्रहारसे छिन्न-भिन्न होकर जहाँ-तहाँ बिखर जाता है और फिर क्षण-भरमें मिलकर एक हो जाता है ॥३९।। उन नारकियोंको अवधिज्ञान होनेसे अपनी पूर्वभवसम्बन्धी घटनाओंका अनुभव होता रहता है, उस अनुभवसे वे परस्पर एक दूसरेको अपना पूर्व वैर बतलाकर आपसमें दण्ड देते रहते हैं ।।४०।। पहलेकी तीन पृथिवियों तक अतिशय भयंकर असुरकुमार जातिके देव जाकर वहाँ के नारकियाँको उनके पूर्वभवके वैरका स्मरण कराकर परस्परमें लड़नेके लिए प्रेरणा करते रहते हैं ।। ४१॥ वहाँ के भयंकर गीध- अपनी वजमयी चोंचसे.. उन नारकियोंके शरीरको चीर डालते हैं और काले-काले कुत्ते अपने पैने नखोंसे फाड़ डालते हैं॥४२॥ कितने ही नारकियोंको खौलती हुई ताँबा भादि धातुएँ पिलायी जाती हैं जिसके दुःखसे वे बुरी तरह चिल्ला-चिल्लाकर शीघ्र ही विलीन (नष्ट ) हो जाते हैं ॥४३॥ कितने ही नारकियोंके टुकड़े-टुकड़े कर कोल्हू (गन्ना पेलनेके यन्त्र) में डालकर पेलते हैं। कितने ही नारकियोंको कदाईमें खौलाकर उनका रस बनाते हैं ॥४४॥जो जीव पूर्वपर्यायमें मांसभक्षी थे उन नारकियोंके शरीरको बलवान् नारकी अपने पैने शास्त्रोंसे काट-काटकर उनका मांस उन्हें ही खिलाते हैं ॥४५|| जो जीव पहले बड़े शौकसे मांस खाया करते थे, सँडासोसे उनका मुख फाड़कर उनके गलेमें जबरदस्ती तपाये हुए लोहेके गोले निगलाये जाते ॥४६॥ यह वही तुम्हारी उत्तमप्रिया है' ऐसा कहते हुए बलवान् नारकी अनिके फुलिंगोंसे
१. दुस्सहोष्णाकुलो-अ०। २. अम्बरीषे । ३. स्थालीपच्यमानतण्डुलोत्पतननिपतनवत् । ४. परुषाः कोषाः ब०, स०, द०। ५. सम्बन्धम् । ६. विकीर्य । ७. खण्डशः। ८. चतुर्थनरकात् प्राक् । ९. सुदारुणम् प.। १०. कृष्णाः। ११. स्थूलाः। १२. विदारयन्ति । १३. ध्वनन्तः । १४. कटाहेषु । १५. छित्त्वा । १६. मुखः । १७. पाकिया अ०, ५०, स०, द०।१८. परे द.। परैः स.।
*ये गोध, कुत्ते आदि जीव तिर्यञ्चगतिके नहीं हैं किन्तु नारकी ही विक्रिया शक्तिसे अपने शरीरमें वैसा परिणमन कर लेते हैं। ..