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________________ आदिपुराणम् संकेतकेतकोथाने' कर्कशक्रकचच्छदे । स्वामिहोपह्नरे कान्ता यत्यमिसिसीर्षया ॥४८॥ पुरा पराङ्गना संगति दुर्ललितानिति । संयोजयन्ति तप्तायः पुत्रिकाभिर्बलात् परे ॥ ४९ ॥ तांस्तदालिङ्गनासंगात् क्षणमूर्च्छामुपागतान् । तुदन्त्ययोमयैस्तोत्रै रन्ये मर्मसु नारकाः ॥५०॥ तदङ्गा लिङ्गमासंगात् क्षणामीलितलोचनाः । निपतन्ति महीरने 'तेऽङ्गारीकृतविग्रहाः ॥५१॥ "नाग्निदीपितान् केचिदा यसान् शाल्मली मान् । "आराध्यन्ते हठात् कैश्चित् तीक्ष्णोर्वाधोऽग्रकण्टकान् ते तदारोपणोर्वाधः कर्षणैरतिकर्षिताः । मुच्यन्ते नारकैः कृच्छात् क्षरक्षतजमूर्त्तयः ॥ ५३ ॥ १२ " रुकवा पूर्णमदीरन्ये विगाहिताः । क्षणाद् विशीर्णसर्वाङ्गा "विलुप्यन्तेऽम्बुचारिभिः ॥ ५४ ॥ विस्फुलिङ्गमयीं शय्यां ज्वलन्तीमधिशायिताः । शेरते प्लुष्यमाणाङ्गा दीर्घनिद्रासुखेप्सया ॥५५॥ असिपत्रवनान्यन्ये श्रयन्त्युष्णार्दिता यदा । तदा वाति महत्तोमो विस्फुलिङ्गकणान् किरन ॥५२॥ तेन पत्राणि "पात्यन्ते सर्वायुधमयान्परम् । तैश्छिभिसर्वाः पूत्कुर्वन्ति वराककाः ॥५७॥ २१२ व्याप्त तपायी हुई छोहेकी पुतलीका जबरदस्ती गलेसे आलिंगन कराते हैं || ४७॥ जिन्होंने पूर्व भवमें परखियोंके साथ रति-कीड़ा की थी ऐसे नारकी जीवोंसे अन्य नारको आकर कहते हैं कि 'तुम्हें तुम्हारी प्रिया अभिसार करनेकी इच्छासे संकेत किये हुए कैतकीवनके एकान्त में बुला रही है, इस प्रकार कहकर उन्हें कठोर करोत -जैसे पत्तेवाले केतकीवन में ले जाकर तपायी हुई, लोहेकी पुतलियोंके साथ लिन कराते हैं ||४८-४९ | उन लोहेकी पुतलियोंके आलिङ्गन से तत्क्षण ही मूर्च्छित हुए उन नारकियोंको अन्य नारकी लोहेके परेनोंसे मर्मस्थानों में पीटते हैं ॥ ५० ॥ उन लोहेकी पुतलियोंके आलिंगनकालमें ही जिनके नेत्र दुःखले बन्द हो गये हैं तथा जिनका शरीर अंगारोंसे जल रहा है ऐसे वे नारकी उसी क्षण जमीनपर गिर पड़ते हैं ॥ ५१ ॥ कितने ही नारकी, जिनपर ऊपरसे नीचे तक पैर्ने काँटे लगे हुए हैं और जो धौंकनी से प्रदीप्त किये गये हैं। ऐसे लोहे के बने हुए सेमर के वृक्षोंपर अन्य नारकियोंको जबरदस्ती चढ़ाते हैं ||५२ || वे नारकी न पर चढ़ते हैं, कोई नारकी उन्हें ऊपरसे नीचेकी ओर घसीट देता है और कोई नीचे से ऊपरको घसीट ले जाता है। इस तरह जब उनका सारा शरीर छिल जाता है और उससे रुधिर बहने लगता है तब कही बड़ी कठिनाई से छुटकारा पाते हैं ।। ५३ ।। कितने ही नारकियों को भिलावेके रससे भरी हुई नदीमें जबरदस्ती पटक देते हैं जिससे आप क्षण भर में उनका सारा शरीर गल जाता है और उसके खारे जलकी लहरें उन्हें लिप्त कर उनके घावोंको भारी दुःख पहुँचाती हैं ॥ ५४ ॥ कितने ही नारकियोंको फुलिङ्गोंसे व्याप्त जलती हुई अग्निको शय्या पर सुलाते हैं। दीर्घनिद्रा लेकर सुख प्राप्त करने की इच्छासे वे नारकी उसपर सोते हैं जिससे उनका सारा शरीर जलने लगता है ||५५|| गरमीके दुःखसे पीड़ित हुए नारकी ज्यों ही असिपत्र बनमें (तलवारकी धारके समान पैने पत्तोंवाले बनमें ) पहुँचते हैं त्यों ही वहाँ अमि फुलिंगोंको बरसाता हुआ प्रचण्ड वायु बहने लगता है। उस वायुके आघातसे अनेक आयुधमय पत्ते शीघ्र ही गिरने लगते हैं जिनसे उन नारकियोंका सम्पूर्ण शरीर छिन्न-भिन्न हो जाता है। और उस दुःख दुःखी होकर बेचारे दीन नारकी रोने-चिल्लाने लगते हैं ।। ५६-५७ ।। १. केतकीवने । २. रहसि । ३. आह्वानं करोति । ४. अभिसर्तुमिच्छा अभिसिसीर्षा तथा । निधुबनेच्छयेत्यर्थः । ५. दृप्तान् । ६. तोदनं । 'प्राजनं तोदनं तोत्रम्' इत्यभिधानात् । तुदन्त्यनेनेति तोत्रम् 'तुव व्यथने' इति धातोः करणे त्रङ् प्रत्ययः । ७. - संग- अ०, प०, ६०, स०, ल० । ८ तेऽङ्गाराङ्कितविग्रहाः प०, द, स०, अ०, ल० । ९. चर्मप्रसेविकाग्नि । 'भस्त्रा चर्मप्रसेविका' इत्यभिधानात् । १०. अयोमयान् । ११. ' रुह बीजजन्मनि' णिङ् परि हा पा इति सूत्रेण हकारस्य पकारः । १२. भल्लातकीर्तलम् । १३. छिद्यन्ते । १४. विलिप्यन्तेऽम्बु ल० । १५. सात्यन्ते स० द० अ०, प०, ल०,
SR No.090010
Book TitleAdi Puran Part 1
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2004
Total Pages782
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size27 MB
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