SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Translation AI Generated
Disclaimer: This translation does not guarantee complete accuracy, please confirm with the original page text.
The Eighth Chapter 177. Having sent the two chief messengers ahead, the king himself prepared to depart in their wake. 15. Then, the wise Mativar, Anand, Dhanamitra, and Akampan, the four great ministers, the priest, the royal treasurer, and the generals, 16. along with other prominent men eager to depart, surrounded the king like the gods surrounding Indra. 17. On that day, the efficient Vanajangha set out on his journey. 18. There was a great commotion among the officials at the time of departure. 19. They said to their servants, "Bring quickly those female elephants adorned with golden necklaces and golden anklets, who are free from rut and thus virtuous like noble women, for the queens to ride. 20. You, quickly saddle the swift messengers and make them ready. 21. You, bring palanquins for the queens to ride, and you, find strong bearers for the palanquins. 22. You, water and saddle the swift young horses quickly. 23. You, quickly summon those maids who are skilled in all tasks, especially in cooking, grinding grain, and cleaning." 24. You, go ahead of the army and prepare the encampment, and also make high stacks of grass and fodder. 25. You, are in charge of all the king's wealth, so you are appointed to the royal kitchen. 26. You, gather all the necessary supplies for the kitchen without any hindrance. 27. You, take along beautiful cows with calves, who give plenty of milk, and keep them safe in places with water and shade along the way. 28. You, protect the royal domain first, like the guardians of the ocean, with shining swords in your hands.
Page Text
________________ अष्टमं पर्व १७७ विसृज्य च पुरो दूतमुख्यौ तौ कृतसस्क्रियो । स्वयं तदनुमार्गेस प्रयाणायोचतो नृपः ॥१५॥ ततो मतिवरानन्दौ धनमित्रोऽप्यकम्पनः । महामन्त्रिपुरोधोऽप्रयश्रेष्ठिसेनाधिनायकाः ॥१६॥ प्रधानपुरुषाश्चान्ये प्रयाणोचतबुद्धयः । परिवर्नरेन्द्र तं शतक्रतुमिवामराः ॥११॥ तस्मिञवाहि सोहाय' प्रस्थानमकरोत् कृती । महान् प्रयाणसंक्षोमस्तदाभत्तचियोगिनाम् ॥१८॥ यूयमावदसौवर्णप्रैवेयादिपरिच्छदाः । करेणूमददैमुख्यात् सती: कुलवप्रिय ॥१९॥ राशीनामधिरोहाय सज्जाः प्रापयत दूतम् । यूयमवत रीराशु पर्याणयत शीघ्रगाः॥१२॥ नृपवल्लमिकानां च यूयमर्पयताश्विमाः । काचवाहजनान् यूवं गवेषयत दुर्दमान् ॥१२॥ तुरामकुलं चेदमापाय्योदकमाशुगम् । बदपर्याणकं यूयं कुरुवं सुवोऽन्वितम् ॥१२२॥ मुजिष्याः सर्वकर्मीयो यूयमाझ्यत इतम्'। पाकमान्यपरिक्षोद शोधनादिनियोगिनीः ॥ २३॥ यूयं सेनाप्रगा भूत्वा निवेशं प्रति सूच्छ्रिताः । मनुतिहत सस्काय"मानगर्मा महावृतीः ॥१२॥ यूयं महानसे राज्ञो नियुक्ताः सर्वसंपदाः । समग्रवत तयोग्य सामग्री निरवग्रहाः ॥१२५।। यूयं गोमण्डलं चार वास्सकं बहुधेनुकम् । सोदकेषु प्रदेशेषु सच्छायेज्वभिरक्षत ॥१२॥ यूयमारक्षत मेणे "राजकीयं प्रथमतः। सपाठीना इवाम्मोधेस्वरा भासुरातपः ॥२०॥ विचार कर साथ-साथ वहाँ जानेका निश्चय किया ॥११४ ॥ तदनन्तर खूब आदर-सत्कारके साथ उन दोनों विद्याधर दूतोंको उन्होंने आगे भेज दिया और स्वयं उनके पीछे प्रस्थान करनेकी तैयारी की ॥११५॥ तदनन्तर मतिवर, आनन्द, धनमित्र और अकम्पन इन चारों महामन्त्री, पुरोहित, राजसेठ और सेनापतियोंने तथा और भी चलनेके लिए उद्यत हुए प्रधान पुरुषोंने आकर राजा वनजंघको उस प्रकार घेर लिया था जिस प्रकार कि कहीं जाते समय इन्द्रको देव लोग घेर लेते हैं ॥११६-११७। उस कार्यकुशल वनजंघने उसी दिन शीघ्र ही प्रस्थान कर दिया। प्रस्थान करते समय अधिकारी कर्मचारियोंमें बड़ा भारी कोलाहल हो रहा था ॥ ११८ ॥ वे अपने सेवकोंसे कह रहे थे कि तुम रानियोंके सवार होनेके लिए शीघ्र ही ऐसी हथिनियाँ लाओ जिनके गलेमें सुवर्णमय मालाएँ पड़ी हों, पीठपर सुवर्णमय मूलें पड़ी हों और जो मदरहित होनेके कारण कुलीन स्त्रियोंके समान साध्वी हों। तुम लोगशीघ्र चलनेवाली खबरियोंको जीन कसकर शीघ्र ही तैयार करो। तुम नियोंके चढ़नेके लिए पालकी लाओ और तुम पालकी ले जानेवाले मजबूत कहारोंको खोजो। तुम शीघ्रगामी तरुण घोड़ोंको पानी पिलाकर और जीन कसकर शीघ्र ही तैयार करो। तुम शीघ्र ही ऐसी दासियाँ बुलाओ जोसब काम करनेमें चतुर हों और खासकर रसोई बनाना, अनाज कूटना, शोधना आदिका आर्य कर सकें। तुम सेनाके आगे-आगे जाकर ठहरनेकी जगहपर डेरा-तम्बू आदि तैयार करो तथा घास-भुस आदिके ऊँचे-ऊँचे ढेर लगाकर भी तैयार करो। तुम लोग सब सम्पदाओंके अधिकारीहोइसलिए महाराजको भोजनशालामें नियुक्त किये जाते हो। तुम बिना किसी प्रतिबन्धके भोजनशालाकी समस्त योग्य सामग्री इकट्ठी करो। तुम बहुत दूध देनेवाली और बछड़ोंसहित सुन्दर-सुन्दर गायें ले जाओ, मार्गमें उन्हें जलसहित और छायावाले प्रदेशोंमें सुरक्षित रखना। तुम लोग हाथमें चमकीली तलवार लेकर १. सपदि । २. कष्ठभूषादिपरिकराः। ३. विमुखत्वात् । ४. वेसरीः। ५. बद्धपर्याणाः कुरुत । ६. कावटिजनान् । ७. निरङ्कशान्। ८. शीघ्रगमनम् । ..९. चेटीः। १०. सर्वकर्मणि समर्थाः । ११. दुताः ब०, ५०, ६०, स०। १२. मोदः कुट्टनम् । १३. सूच्छिती: द., प.। सोच्छिती: अ०, स०। उच्छिता: उद्धताः । १४. कुरुत। १५. कायमानं तणगृहम् । 'कायमानं तृणोकसि' इत्यभिधानचिन्तामणिः । १६. समयं कुरुध्वम् । १७. निर्बाधाः । १८. स्त्रीसमूहम् । १९. राज इदम् । २०. भासुरखङ्गाः। २३
SR No.090010
Book TitleAdi Puran Part 1
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2004
Total Pages782
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy