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The city of Alaka, whose greatness is renowned and which is filled with people of good character from all the four varnas (Brahmana, Kshatriya, Vaishya, Shudra), adorned the head of King Vijaya like a beautiful and round tilak. The king of Alaka was a Vidyadhara named Atibala, who destroyed the strength of his enemies and whose command was worn like a crown by all the Vidyadhara kings. Atibala was a valiant warrior who achieved victory through Dharma (righteousness) and conquered his enemies. He defeated his powerful adversaries using the six qualities of diplomacy, war, strategy, position, refuge, and duality. The king always associated with the elderly and had conquered his senses. Therefore, he easily uprooted and destroyed his enemies with his army. Like an elephant, he was endowed with great prosperity, belonged to a noble lineage, and had long, radiant arms. Just as an elephant nourishes its dependents like bees with its abundant water from its trunk, the king sustained those who sought his refuge with his great generosity. The rays of his shining teeth emanated from his mouth, and his eyebrows were slightly raised, making it seem as if he had conquered the moon adorned with moonlight.
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________________ महापुराणम् इति प्रतीतमाहारम्या विजयामहीभृतः । सद्वृत्तवर्णसंकीर्णा सा पुरी तिलकायते ॥१२॥ तस्याः पतिरभूत् खेन्द्रमुकुटारूढशासनः । खगेन्द्रोऽतिबलो नाम्ना प्रतिपक्षबलक्षयः ॥१२२॥ सधर्मविजयी शूरो जिगीषुररिमण्डले । 'पाड्गुण्येनाजयत् कृत्स्नं विपक्षमनुपेक्षितम् ॥१२३॥ स कुर्वन् वृद्धसंयोगं विजितेन्द्रियसाधनः । 'साधनैः प्रतिसामन्तान् लीलयैवोदमूलयत् ॥१२॥ "महोदयो महोत्तङ्गवंशा भास्वन्महाकरः । महादानेन सोऽपुष्णादाश्रितानिव दिग्द्विपः ॥१२५॥ लसहन्तांशु तस्यास्यं ''सज्योत्स्नं बिम्बमैन्दवम् । जिस्वेव भूपताकाभ्यामुरिक्षताभ्यां व्यराजत ॥२६॥ बड़ी उत्सुकतासे देखते हैं उसी प्रकार वहाँके उपवनोंको भी लोग बड़ी उत्सुकतासे देखते हैं । वधूवर जिस प्रकार वयस्कान्त-तरुण अवस्थासे सुन्दर होते हैं उसी प्रकार उपवन भी वयस्कान्तपक्षियोंसे सुन्दर होते हैं। वधूवर जिस प्रकार सपुष्पक-पुष्पमालाओंसे सहित होते हैं उसी प्रकार उपवन भी सपुष्पक-फूलोंसे सहित होते हैं। और वधूवर जिस प्रकार बाणांकित-बाणचिह्नसे चिह्नित अथवा धनुषबाणसे सहित होते हैं उसी प्रकार उपवन भी वाण जातिके वृक्षोंसे सहित होते हैं ।। १२० ।। इस प्रकार जिसका माहात्म्य प्रसिद्ध है और जो अनेक प्रकारके सच्चरित्र ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि वर्णोसे व्याप्त है ऐसी वह अलका नगरी उस विजया पर्वतरूपी राजाके मस्तकपर गोल तथा उत्तम रंगवाले तिलकके समान सुशोभित होती है ॥१२१।। उस अलकापुरीका राजा अतिबल नामका विद्याधर था जो कि शत्रुओंके बलका क्षय करनेवाला था और जिसकी आज्ञाको समस्त विद्याधर राजा मकट के समान अपने मस्तकपर धारण करते थे॥१२२॥ वह अतिबल राजा धर्मसे ही (धर्मसे अथवा स्वभावसे) विजयलाभ करता था शुरवीर था और शत्रुसमूहको जीतनेवाला था। उसने सन्धि, विग्रह, यान, आसन, संश्रय और द्वैधीभाव इन छह गुणोंसे बड़े-बड़े शत्रुओंको जीत लिया था ॥१२३॥ वह राजा हमेशा वृद्ध मनुष्योंकी संगति करता था तथा उसने इन्द्रियोंके सब विषय जीत लिये थे इसीलिए वह अपनी सेना-द्वारा बड़े-बड़े शत्रुओंको लीलामात्रमें ही उखाड़ देता था-नष्ट कर देता था ॥१२४॥ वह राजा दिग्गजके समान था क्योंकि जिस प्रकार दिग्गज महान् उदयसे. सहित होता है उसी प्रकार वह राजा भी महान् उदय (वैभव ) से सहित था, दिग्गज जिस प्रकार ऊँचे वंश ( पीठकी रीढ़) का धारक होता है उसी प्रकार वह राजा भी सर्वश्रेष्ठ वंश-कुलका धारक था-उच्च कुलमें पैदा हुआ था। दिग्गज जिस प्रकार भास्वन्महाकर-प्रकाशमान लम्बी ढूँड़का धारक होता है उसी प्रकार वह राजा भी देदीप्यमान लम्बी भुजाओंका धारक था तथा दिग्गज जिस प्रकार अपने महादानसे-भारी मदजलसे भ्रमर आदि आश्रित प्राणियोंका पोषण करता है उसी प्रकार वह राजा भी अपने महादान-विपुल दानसे शरणमें आये हुए पुरुषोंका पोषण करता था। १२५ ॥ उस राजाके मुखसे शोभायमान दाँतोंकी किरणें निकल रही थीं तथा दोनों भौंहें कुछ ऊपरको उठी हुई थीं इसलिए ऐसा जान पड़ता था मानो उसके मुखने चन्द्रिकासे शोभित चन्द्रमाको जीत लिया है और इसीलिए उसने अपनी १. सद्वृत्तं येषां ते तैः संकीर्णाः, सद्वृत्तं च वर्ण च इति सद्वृत्तवर्णी ताभ्यां संकीर्णा च । २. प्रभुअ०, ८०, स०, द० । ३. आरोपिताज्ञः । ४. क्षयः प्रलयकालः । ५. दैवबलवान् । ६. 'संषिविग्रहयानासनद्वैधाश्रया इति षड्गुणाः' षड्गुणा एव पाडगुण्यं तेन । ७. सावधानं यथा भवति । ८. करणग्रामः । ९. सेनाभिः । सामन्तैः प० । १०, पक्षे पृष्ठास्थि । ११. सज्ज्योत्स्नु ।
SR No.090010
Book TitleAdi Puran Part 1
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2004
Total Pages782
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size27 MB
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