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तीको स्वरूप नीको' गमनरूप भाव सो स्वभाव भेदाभेद चिदप्रकाश भाव को लखाव अतीन्द्रिय आनंद रस भरो छै, तीको यथावस्थित आनंदरस को सु' कहता भले प्रकार, भवन कहता भाव तीको वे रस को स्वभाव कहिजे | अब वे रस का स्वभाव को प्रभाव कहिजे छै । वे आनंदरस को भले प्रकार होवो तीको प्रभाव ऐसो छै, वचन गोचर न छै। अंत सों रहित छै वो केवलज्ञान सों उपज्यो ? सो ज्ञान त्रिकालवर्ती त्रिलोक का पदार्थ अलोक सहित सिंह का द्रव्य, गुण, क्योय, उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य, द्रव्य वा काल, भावादि समस्त भेद जाने छै; ऐसा ज्ञान सो अभेद सत्व छै, तातैं केवलज्ञान को प्रभाव अनंत छै। वे रस का स्वभाव को प्रभाव अनंतगुण को प्रभाव प्रभुत्व एकठो कीज्ये ऐसो छै । आत्मा को अनंतगुणरूप सहज छै सो अनंतगुण पर्यन्त साधनो | वे प्रभाव में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव करि सदा अविनाशी चिदविलास छै।।
इति
१ सम्यक, भला. २ भला, अच्छा, ३ कहा जाता है, ४ उसका