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स्वर्गीय कविवर दीपचंदजी कृत
ज्ञानदर्पण
दोहा
गुण अनंत ज्ञायक विमल, परमज्योति भगवान । परमपुरुष परमातमा, शोभित केवलज्ञान | ॥१॥
सवैया ( मनहर ) भासना भई है जाके, सहज लखाव है ।
महिमा महत महा,
ज्ञान गुण मांहि ज्ञेय ताके शुद्ध आतमा को अगम अपार जाकी अचल अखंड एकता को दरसाव है ।। दरसन' ज्ञान सुख बीरज अनंत धारे, अविकारी देव चिदानंद ही को भाव है। परमपदधारी जाको,
ऐसो परमातमा
'दीप' उर देखे लखि निहचे सुभाव है | |२॥ देखे ज्ञानदर्पण को मति परपण' होय,
सरूप में करतु है | आतमीक पाइयतु,
अर्पण' सुभाव को उठत तरंग अंग अरथ विचार किए आप उघरतु' है ।। आत्मकथन एक शिव ही को साधन है, अलख अराधन के भाव को भरतु है। चिदानंदराय के लखायवे को है उपाय, याके सरधानी पद सासतो वरतु है ६ ।।३।।
१ अनन्त दर्शन र निश्चय सहज ३ प्राप्त ४ लीनता, ५ प्रकट होता है, ६ वर्तता है।
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