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छै। गुरुलधु भया इन्द्रीग्राह्य होय, भारी हूवा गिरि पड़े; हलका भया उडि जाय, तब अबाधित, अनाघात सत्ता घाती जाय; तातें अगुरुलघु सत्ता को भाव अनंतधा' छै । ज्ञान अगुरुलघु, दर्शन अगुरुलघु, इत्यादि अनंतभाव अगुरुलघु धऱ्या छै। एक प्रदेश अगुरुलघु प्रदेश भाव छै। ती प्रदेश अगुरुलघु प्रदेश भाव लखाव काजे तब अनंत रस होइ छै सो कहिये छै-वे प्रदेश अगुरुलघु भाव ने सम्यग्दृष्टि देखिजे, तब अनंत रस होई छै सो कहिये छै । प्रदेशस्यों अनंतगुण प्रकाश उठे छै । एक-एक गुणप्रकाश संज्ञा, संख्या, लक्षण, प्रयोजनादि अनंत भेद रूप भाव अनेक दिखावे छै अरु सत्ता मत वस्तु एक है। एक-- 4. र. में अनंत धरम गुण को छै । गुण अनंत शक्ति ने लिया छै। पर्याय नृत्य, थट, कला, रूप, सत्ता, भाव आदि द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव आदि भेद-प्रकाश सकल भेद को एक सत्व अभेद प्रकाश सकल प्रकाश मिलि एक चिदप्रकाश अभेदप्रकाश एक-एक प्रदेश इसो' प्रकाश ने लिया ऐसा असंख्य प्रदेश को पुंज वस्तु । प्रकाश तिहका एक प्रदेश प्रकाश माहू जो देखिजे, तो अनंत अनुभव रस स्वानुभूति रस देखता अपार शक्ति भेदाभेद प्रकाश में अनंत चिदप्रकाश रस लक्षण करता अनुभव रस होय छै सो अनंत छै, वचन अगोचर छ ।
___ अब जी रस को जो स्वभाव छै अरु जी स्वभाव अनंत प्रभाव छै सो कहिजे छै:-प्रदेश को अगुरुलघु तीको जो लखाव करता रस सो प्रदेश अगुरुलघु भाव को भेदाभेद चिदप्रकाशनि को लखाव तीमें जो रस की स्थिति अनुभूति तथा अनुभव रस
१ अनन्त प्रकार. २ धारण करता है, ३ और. ४ ऐसा. ५ जिस, ६ उसका. ७ उसमें