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इत्यादि अनंतगुण की अनंतसत्ता सो एक प्रमेयत्व में विराजे' छ । प्रमाग लरवा जोग्य सत्ता भई बिना प्रमेयत्व अप्रमाण होता, सत्ता ने कोई न मानतो, तब अकार्यकारी मया गणना में न आवती । तातै प्रमेयत्व में अनंतसत्ता कही-एक-एक गुण की सत्ता विराजे छै। ता एक-एक गुण सत्ता में अनंतभाव छै सो कहिजे छै-एक द्रव्य छै, तीको सार्थक नाम द्रव्यत्व करि पायो छै “गुणपर्यायं द्रवति व्याप्नोति इति द्रव्यम् । द्रव्यत्व गुण न हो तो द्रव्य न होतो'। काहे तैं? बिना द्रया, गुण, पर्याय, स्वभाव को प्रकाश न होतो । तातें द्रवे तब पर्याय-तरंग उठे, तब गुण अनंत अनंतशक्तिमंडित अनंतगुणपुंजस्वरूप द्रव्यनि को परिणमना गुण परिणाम आयो, तब स्वरूपलाभ अनंत गुण लाभ आयो, तब द्रव्यगुण की सिद्धि भई। ई प्रकार द्रव्य द्रवे, पर्याय उठे, तब वो पर्याय द्रव्य ने द्रवे. तब पर्याय गुण, द्रववा करि" गुण परिणति तें गुणलाभ ले गुण में मिले, तब गुण सिद्धि वै. तब गुण समुदाय द्रव्य सिद्धि है। गुण द्रवे, तब पर्याय रूप द्रया द्वे, गुण-पर्याय द्रये, तब पर्याय गुण द्रववा करि गुणपरिणति तैं गुण-लाभ ले, गुण में मिले, तब गुणसिद्धि बै, तब गुणसमुदाय द्रव्य सिद्धि है । गुण द्रवे, तब पर्याय गुणपरिणति, तीसों एक हवै, तब स्वयं स्वएर रूप है। तब गुण-लक्षण करि लक्ष्य नाम पावे । गुण द्रवे तब एक सत्त्व सकल गुण को होय तिन' द्रव्य की सिद्धि होई। ई प्रकार द्रव्यत्व सत्ता द्रय करि अनंत भाव ने धर्यो छै। ई प्रकार द्रव्यत्व सत्ता ज्यों अनंत भाव धऱ्या छै। जो-जो गुण रूप में सत्ता कही सो वाही सत्ता ज्यों द्रव्यत्व करि भेद छै, त्यों भाव दिखायो,त्यों ही अगुरुलघुत्व सत्ता भाव अनंत ने धर्या
१ विद्यामान, २ गिनती में गिनने में. ३ होता है, ४ किस कारण से, ५ इस प्रकार. ६ वह ७ ढल कर. ८ उस से, ६ उन, १० वहीं