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सामान्य भाव विशेषभाव छ । सो ऐसा भाव-भेद वस्तुत्व करे छै, परि एक रूप रहे छै; ऐसी कला वस्तुत्व धरया छै । वस्तुत्व गुण सकलगुण का सामान्यविशेषरूपपर्यायमंडित सो पर्याय वस्तु का अनंत भया। भाव प्रमेयत्व ने सामान्यविशेषपणो वस्तुत्व की पर्याय दियो, तब प्रमेयत्व सामान्यविशेषरूप भयो, तब सामान्य विशेषरूप होय स्वरूप रहे छै। जो वस्तुत्व की कला छी' सो प्रमेयत्व में आई, सो कला प्रमेय धरी सो कला अनंतरूप ने धर्या है सो कहिजे छै:
सो प्रमेय गुण तीकी अनेक प्रकारता धरि एक रूप रहवो ऐसो प्रमेय दर्शन दृष्टि सम्यक् छै, तातै प्रमाण करवा जोग्य छ । ज्ञान सम्यकज्ञानपणो धर्या छै सो ज्ञान प्रमाण करवा जोग्य छै । वीर्य सम्यक् वस्तु निहपन्न राखिवो जोग्य छै सो प्रमाण करवा जोग्य छै । जो प्रमेय गुण न होय तो अनंतगुण अपना रूप ने न धरता, न प्रमाणजोग्य होता । तातै प्रमेय करि अनंत सूक्ष्म पर्याय सकल गुणां में आया, तब वे आपणे रूप धर्यो। तातै एक वस्तुत्व की अनंतकला तिह में एक प्रमेयत्व की कला, तिह प्रमेय कला अनंतगुण रूप धर्यो, ज्ञान प्रमाण करिवा करि ज्ञान रूप धर्यो, सत्तारूप धर्यो, वीर्यरूप धर्यो, प्रमेयत्व में सत्ता को रूप आयो सो रूप अनंतसत्ता में धऱ्या छै । काहे ते५ धा छै? सत्ता तीन प्रकार छै। स्वरूपसत्ता भेद करि महासत्ता परम सामान्य संग्रहनय करि एक कही, परि अवांतरसत्ता तथा स्वरूपसत्ताभेद करि तीन प्रकार छै। द्रव्यसत्ता, गुणसत्ता, पर्यायसत्ता तीना में गुणसत्ता का अनंत भेद है | दर्शनसत्ता. ज्ञानसत्ता, सुखसत्ता, वीर्यसत्ता, प्रमेयत्वसत्ता. द्रव्यत्वसत्ता,
१ है. २ उसकी, ३ अनेकरूपता, ४ उसमें. ५ किससे. ६ तीनों में
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