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थिरता पावे है सो चारित्र ते, प्रमेय सत्ता आदि सब गुण थिरता पावे हैं सो चारित्र ते । वेदकभाव सब का चारित्र करे है। चारित्र सब द्रव्य, गुण, पर्याय शक्ति लक्षण सरूप रूप सर्वस्व वेदे है, थिरता राखे है । चारित्र मंत्री ते अपने घर की रिद्धि का जो सुख है सो परमातम राजा विलसे है। जो चारित्र न होता, तो अपनी राजधानी का सुख आप परमातम राजा न विलसता । काहे ते? यह रसास्वाद करणे का अंग इस ही का है, और में कहीं। राजा का पद सफल अनंत सुख ते है सो सुख इसते' है । तातैं यह राजपद की सफलता का कारण है। अर्थक्रिया षट्कारक यातें है । उत्पाद, व्यय, ध्रुवता में स्वरूप लाभ स्वभाव प्रच्यवन र अवस्थित भाव करि सिद्ध है है । सब गुण की अनंत महिमा याने सफल करी है। सब में प्रवेस करि यदि विनके स्वरूप भाव की प्रगटता करि वरते हैं, तब परमातम राजा जाने । यातें सब की प्रगटता अरु रसास्वाद है। परमसुख याही करि भयो है । या बिना वेदकता नहीं । यह चारित्र मंत्री सब गुण को सफल करे है। याही करि मेरी गुण प्रजा का विलास है सो जान्या जाय है । और तो जे लक्षण रीति धरे है सो तिन लक्षण को सफलता करि परमातम राजा की राजधानी राखे है, तातें चारित्रमंत्री सब घर की निधि की सिद्धि करे है। बारे ही बारे सिद्धि न करे, विनके घर में प्रवेश करि विनकी निधि महिमा का विलास व्यक्त करे है, ऐसा चारित्र प्रधान है | चारित्र काहू का आचरण न करे, तो सब गुण की भेंट परमातमराजा सो भई ही न भई, तब निज प्रजा का अभाव भये राजा किस का कहावे, तार्ते राजपद का राखणसील ( चारित्र) बड़ा मंत्री है।
१ करने, २ इससे, ३ च्युत खिसकना, ४ के द्वारा ५ उनके ६ बाहर ही बाहर
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