________________
छै | ज्ञान बिना परमातम राजा की विशेष विभूति कुन' प्रगट करे? ज्ञान ही प्रगट करे। ज्ञान मंत्री (को) ज्ञायकतारूप जानि परमातम राजा (ने) सर्व में प्रधानता दई । राजा को राज ज्ञान करि है। जैसे काहू के घर में निधान है, न जाने तो वह निधान भयो ही न भयो तैसे परमातम राजा के अनन्त निधान' ज्ञान न जाने, तो सब वृथा होय । तातैं सब पद की सिद्धि ज्ञानमंत्री ते है। सत्ता में सासतालक्षण (ने) और गुण को सासता किया | उत्पाद, व्यय को धरे द्रव्य, गुण, पर्याय का आधार सो ज्ञान ने जनाया । परमातम राजा को वीर्य में निहपन्न राखवे का भाव है, सबको निहपन्न राखे सो ज्ञान ने जनाया। गुणन का भाव पर्यायभाव ज्ञान ने जनाया। तातैं ज्ञानमंत्री सब का जनावनहार है | सब को ज्ञान कर परमातम राजा जाने है, तातैं यह जाने है । मेरे ज्ञानमंत्री करि मैं सब जानो हों। यह ज्ञानमंत्री प्रधान सब परि प्रधान है। या ज्ञानमंत्री को अपना सर्वस्व सौंध्या है अरु विशेष अतीन्द्रिय आनंद की रिद्धि ज्ञान पावे है। ज्ञान तैं इस परमातम राजा के और बड़ा नाहीं । सर्वज्ञता याही को संभवे है ।
आगे चारित्रमंत्री कैसे सेवे है सो कहिये है
परमातम राजा के जेता कछु राजरिद्धि का भाव है, तेता भाव को चारित्र आचरे है, थिरता राखे है। ज्ञान के जानपने को आस्वादी होय थिरता राखे, आचरे ज्ञान स्वसंवेदभाव धरे, परम आनन्द उपजावे है सो चारि दरसन में सर्वदरशी शक्ति है । स्वरूपं को देखे है, परमातम राजा के देखवे ते जो आनन्द पावे है, थिरताभाव पावे है सो चारित्र ते वीर्य निहपन्नता की
|
|
१ कौन २ खजाना ३ इस ४ जितना ५ उतना
३६