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आगे सम्यक्त फौजदार का वर्णन करिये है
सम्यक्त फौजदार; सब गुणप्रजा सब असंख्यदेसन की है, तिस प्रजा को भलीभांति पाले है । तिस गुणप्रजा के प्रतिकूली है तिनका प्रवेश न होण' देहै। काहू की जोरी चोरी न चले है। ज्ञान का प्रतिकूल अज्ञान ता कार ससारी अंध भये डोले हैं: निजतत्त्व को न जाने है; स्वरूप से भिन्न पर को हेय न जाने है। परको स्व मानि-मानि मोह बैरी को प्रबलता करि अपणी' शक्ति मंद करि चौरासी लाख जोनि-देशन में अनादि के हीडे है, थिरता का लेस भी न पाये है। ऐसी अज्ञान महिमा ताको यह सम्यक्त फौजदार अपने देशन में प्रवेस अंसमात्र हू न करने देहै । अर दरसनावरणी स्वरूप का दरशन न होने देहै, विसते प्राणी पर के देखवे में वरते है, तहां आतम रति माने है। अनादि आवरण ऐसा है | चक्षु द्वारा परावलोकन' होय है सो हू न होने देहै, चक्षु दरशनावरणी ऐसा है । अचक्षुदरशनावरणी अपक्षुदरशन हू न होने देहै । अवधिदरशनावरणी अवधिदरशन न होने देहै। केवलदरशनावरणी केवलदरसन न होने देहै। निद्रा" (पांच.) जागरतर का आवरण करे है सो स्वरूप दरशन कहां ते होने दे? तारौं दरशनावरणी स्वरूप दरशन का घातक है। ऐसे प्रतिकूलों को सम्यक्त फौजदार प्रवेश न होने दे। मोह, सम्यक्त का घातक अनंत सुख का घातक स्वरूपाचरण चारित्र का घातक ! इस मोह (न) जगत के जीव बहिरमुख करि राखे हैं, पर का फंद" पारि५ व्याकुल करि अनातम अभ्यास तैं दुखी किये हैं। साम्यभाव-अमृतरस न चाखने देहै। अतत्त्व में श्रद्धा, रुचि प्रतीति करि मानी है, पर-पद का अभिमानी राग ते उन्मत्त १ होने. २ देता है. ३ किसी, ४ अपनी, ५ भ्रमण कर रहा है, ६ देता है, ७ उससे, ८ लगते हैं. ९ दूसरे का देखना, १० भी, ११ मुद्रित पाठ है- निद्रा पोच, १२ जागृत, जागने का. १३वहिर्मुख, बाहरी प्रवृत्ति पाले. १४ फन्दा. १५ डालकर
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