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सानो वीपक्ष सत्ता में कहिए है
सत्ता ते प्रतिकूल का अभाव सत्ता ने किया अपनी वीरवृत्ति करि ऐसी वीर्यशक्ति सत्ता में है, तिस ते सत्ता सासती' निहपत्ति' धरे है। है विलास द्रव्य--गुण-परजाय का, वीर्य ते सत्ता करे है; तातै वीर्यरस में है । जेते गुण हैं अपने-अपने प्रभाव को धरे हैं, ते-ते सब गुण में सासताभाव, विकासभाव, आनंदभाव, वस्तुत्वभाव, प्रकाशभाव, अबाधितभाव ऐसे अनन्तभाव वीरत्व में आये; शक्ति ते वीर्य की, याते वीर्यरस में सब के राखणे का पराक्रम आया, ताते वीररस सत्ता में भया । सत्ता तातै सब को "है" भाव दिया। निहपत्ति वीर्य ने करी, तातै वीररस सत्ता में कहिये।
आगे करुणरस सत्ता में कहिए है
सत्ता में करुणा है। काहे ते सत्ता 'है' भाव और गुण को न देता, तो सब विनसते, तातै अपना है भाव सब को दे करि राखे, तब करुणा सधी, ता करुणरस सत्ता में आया।
__ आगे सत्ता में यीभत्सरस कहिए है।
सत्ता अपने 'है' भाव के प्रभाव का विलास बड़ा देख्या, तब और प्रतिकूल भाव सों ग्लानि भई, तब प्रतिकूल भाव न धर्या, तब वीभत्स कहिए।
आगे भयरस सत्ता में है सो कहिए है
सत्ता ऐसे भय को धरे है, असत्ता में न आवे सो भय कहिए।
१ शाश्वत, २ निष्पत्ति, रचना, ३ किस से
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