________________
अविकारी भेदविकल्प को अभाव जामें, सकल पदार्थ को सकल सामान्यभावदरसी सत्तामात्र अवलोकी, ऐसो आभूषण सत्ता पहर्यो, तब यह सिंगार सत्ता को भयो । वीर्य सब निहपन्न' राखवे समर्थ सो सत्ता धर्यो, तब सत्ता की सोभा भई । प्रमेयगुण सब को प्रमाण करवे जोग्य, सब जातें प्रमाण भये सो सत्ता ने धर्यो, तब सत्ता प्रमाणरूप भई, तब सोभा भई: तब सत्ता को सिंगार है। अगुरुलघु सत्ता ने धर्यो, तब सत्ता हलकी भारी न भई । तब सत्ता अपने सुद्ध रूप रही, तब भली लागी तब सत्ता की सोभा भई । ऐसे अनंतगुण सत्ता ने धरे आप मांही, तब सत्ता के आभूषण सब भये सो ही सिंगार जानो ।
इहां कोई
करे
गुण में गुण नहीं, सत्ता अनंतगुणधारी काहे कहो ?
ताको समाधान
सत्ता के लक्षण की अपेक्षा सब लक्षणरूप गुण हैं। 'हैं' लक्षण सत्ता को है, यातें सत्ता में आये । द्रव्य तो सब गुण के सब लक्षण को आधार है। सत्ता एक है; लक्षण करि आधार ऐसो भेद विविक्षा ते प्रमाण है। ऐसे सत्ता सब रूप आभूषण बनाव करि सिंगार को धरि सोभावती है। सत्ता द्रव्य, गुप्प, पर्याय के विलास भाव विलसे है। सब विलासरस सत्ता में है, तातैं सिंगाररस सत्ता में भयो । सत्ता अरु सत्तापरणति दोऊ की रसवृत्ति, प्रवृत्ति सिंगार है। सत्ता परणति सत्ता को वेदे', तब रस निहपत्ति होई अरु सत्ता अपणी परणति घरे, तब आप ही परणति रस को धरे, तब दोऊ के मिलाप ते आनंदरस होय सो सिंगार है।
१ निष्पन्न शक्ति २ अनुभव करे, ३ अपनी
३३