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सत्ता हास्यको धरे है सो कहिए है
दरसन ज्ञानपरणति करि जो उल्हास' आनंद करे, दरसन-ज्ञान-चारित्र की सत्ता सो ही हास्य नाम जानना।
आगे रौद्ररस कहिए हैसत्ता, असत्ता प्रतिकूलता को अपने वीर्य ते जीति सदा रहे है, तहाँ सदा परभाव का अभाव करणा। पर के अभाव रूप भाव सो ही रौद्ररस है।
आगे अद्भुतरस कहिए हैअद्भुत सत्ता में ऐसी है-साकार ज्ञान है, निराकार दरसन है, दोऊ की सत्ता एक है। यह अद्भुत भावरस है।
आगे शांतरस कहिए हैसत्ता में और विकल्प नहीं, स्व शांतरूप है; तातै शान्तरस
ऐसे नऊ रस एक सत्ता में सधे हैं। ऐसे ही अनन्त गुणन्न में नवों रस सधे हैं, सो जानियो । रसयुक्त काव्य प्रमाण है। जैसे भोजन लवणरस सों नीको लगे, तैसे काव्य रस सहित भला लगे। तैसे अनन्तगुण अपने रसभरे सोभा पावे, तातै रस वर्णन कियो।
आगे गुणपुरुष गुणपरणतिनारी का विलास कैसे
करे है सो कहिए हैज्ञानगुण अपनी ज्ञानपरणति का विलास करे है ! ज्ञान के अंग में परणति का अंग आया, तब अविनासी अखंडित महिमा १ उल्लास. २ नौ. नयों. ३ स्वादिष्ट, भला