________________
प्रमेय ने किये है। प्रमेय बिना वस्तु प्रमाण जोग्य न होय। अप्रमाण दूरि करने को प्रमाण किये, ते प्रमाणजोग्य प्रमेय राखे है। अनंत गुण में लक्षण प्रमाण करवे जोग्य; प्रदेश प्रमाण जोग्य; सत्ता प्रमाण जोग्य, गुण को नाम प्रमाण जोग्य, क्षेत्र प्रमाण जोग्य, काल प्रमाण जोग्य, संख्या प्रमाण जोग्य, स्थान सरूप प्रमाण जोग्य, फल प्रमाण जोग्य, भाव प्रमाण जोग्य प्रमेयवस्तुत्व प्रमाण जोग्य, प्रमेयद्रव्यत्व प्रमाण जोग्य, प्रमेय अगुरुलघुत्व प्रमाण जोग्य अनंतगुणप्रमेय प्रमाण जोग्य भये, सो सब प्रमेय गुण की रिद्धि फैली है। प्रमय ते प्रमाण की प्रसिद्धता है। प्रमाण ते प्रमेय है। प्रमेय प्रमाण दोउन ते वस्तु प्रसिद्ध प्रगट ठहराइये है। जैसे तीर्थंकर सरवज्ञ' वीतराग देवाधिदेव प्रमाण जोग्य है, विनको वचन प्रमाण जोग्य है। तैसे वस्तु प्रथम प्रमाण जोग्य है, तो गुण प्रमाण जोग्य होय । प्रमेय सब सरूप की सर्वस्वता को प्रमाण करवे जोग्य करे है । तातें ऐसी रिद्धि अखंडित धारे, तातै प्रमेय रिषि कहिये।
आगे प्रमेय को साधु संज्ञा कहिये है. प्रमेय परणाम करि आपरूप को आप साधे, तातें साधु, सब गुण प्रमाण करवे जोग्य ता करि साधे तातें साधु है। प्रमेय विकार को आवने न दे, तातै यति । दरसन का अदरसनविकार दरसनप्रमेय न आवर्न दे। ज्ञान का अज्ञानविकार ज्ञानप्रमेय न आवने दे। वीर्य का अवीर्यविकार वीर्यप्रमेय न आवने दे। अतेन्द्री अनंतसुख भोग का इन्द्रीनि तैं सुखादि दुखविकार सो अतेन्द्री-भोगप्रमेय न आवने दे। सम्यक्त निर्विकल्प यथावत् सम्यक् निश्चयरूप निजवस्तु का सम्यक्त. ताका विकार मिथ्यात
१ सर्वन २ हो, ३ अतीन्द्रिय. ४ सम्यक्त्व, आत्मप्रसान
२२