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अन्त में पं. सदासुख ग्रन्थमाला के सर्वस्व श्रेष्ठिप्रवर,. स्वनामधन्य श्री पूनमचन्द जी लुहाड़िया तथा मन्त्री श्री हीराचन्द बोहरा जी का आभार किन शब्दों में ज्ञापित करूँ? उन्होंने मुक्त भाव से सहज ही प्रकाशन की व्यवस्था कर लोकोपयोगी महान कार्य किया है । अतः विरोः जाकार है। श्रीमान् भागिकचन्द जी लुहाड़िया का भी आमारी हूँ, जिनकी प्रेरणा से परिशिष्ट में "आत्मावलोकन स्तोत्र" संलग्न किया गया है।
देवेन्द्रकुमार शास्त्री