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परमात्मपुराण
दोहा परम अखंडित ज्ञानमय, गुण अनंत के धाम! अविनासी आनंद अज, लखत लहे निज ठाम11911
अचल, अतुल, अनंत महिमामंडित, अखंडित त्रैलोक्य शिखर परि विराजित, अनुपम, अबाधित शिवद्वीप है। तामें आतम-प्रदेस असंख्यदेस हैं, सो एक-एक देस' अनंत गुण-पुरुषनि करि व्याप्त है। जिन गुण--पुरुषन के गुण-परिणति नारी है। तिस शिव द्वीप को परमातम राजा है। ताके चेतना-परिणति राणी है । दरशन, ज्ञान, चारित्र-ये तीन मंत्री हैं। सत्यक्त्व फौजदार है 1 सब देश का परिणाम कोटवाल है। गुणसत्ता मंदिर, गुण--पुरुषन के हैं। परमातम राजा का परमातम-सत्ता-महल वण्या, तहां चेतना परिणति-कामिनी सों केलि करत परम अतीन्द्रिय, अबाधित आनंद उपजे है। गुण अपने लक्षण की रक्षा करे, तातैं यह सब गुण क्षत्रिय कहिये। अरु गुणरीति वरतना व्यापार करे, तातै वैश्य कहिए । ब्रह्मरूप सब हैं, तातें ब्राह्मण कहिए। अपणी परिणति वृत्ति करि आप को आप सेवे, तातै शूद्र कहिए | ब्रह्म को आचरण सब गुण करे, तासैं ब्रह्माचारी । अपनी गुण–परिणति तिया के विलास बिना पर परिणति नारी न सेवे है, तातै परतिया त्यागं ब्रह्मचारिज' के धारी ब्रह्मचारी है। अपने चेतनावान को धारी प्रस्थान किये, तातै वानप्रस्थ है। निज लक्षण रूप निजगृह में रहे है, तातै गृहस्थ है। स्वरूप को साधे, तातें साधु कहिए। अपनी गुण-महिमा रिद्धि १ अजन्मा, सहा २ भाग, प्रदेश ३ परिणमना ४ अपनी ५ स्त्री, पत्नी ६ बह्मचर्य