________________
नाम परसाद शिवथान में सिधाइये ।। नाम के लिये ते सुरराज आय सेवा करे, नाम के लिये ते जगि अमर कहाइये। नाम भगवान के समान आन कोऊ नाहिं, यातें भवतारी नाम सदा उर भाइये ।।६६ ।। आतमा अमर एक नाम के लिये ते होय, चेतना अनंत चिन्ह नाम ही ते पावे हैं। नाम अविकार तिहुंलोक में उधार करे, परम अनूप पद नाम दरसावे है ।। आनंद को धाम अभिराम देव चिदानंद, महासुख कंद सही नाम ते लखावे है। नाम उर जाके सो ही धन्य है जगत मांहि, इन्द्र हू से' आय-आया जाकी सिर गाव है ।।६७ ।।
दोहा नाम अनूपम निधि यहै, परम महा सुखदाय । संत लहे जे जगत में ते अविनाशी थाय ।।६८ ।। नाम परम पद को करे, नाम महा जग सार। नाम धरत जे उर मही, ते पावें भवपार ।।६६ ।।
सवैया भवसिंधु तिरवे को जग में जिहाज नाम, पापतृण जारवे को अगनि समान है। आतम दिखायवे को आरसी विमल महा, शिवतरु सीचवे को जल को निधान है ।। दुख-दव दूर करिवे को कह्यो मेघ सम, १ इन्द्रलोक से भी, २ आ-आ कर. ३ दुःख रूपी वन की अग्नि,
१६१