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सो ही ज्ञानवान भव-सिंधु को तिरैया जानि, सो ही अमलान पद लहे अविनासी है। ताके तुल्य और की न महिमा बखानियतु, सो ही जग माहि सब तत्त' को प्रकासी है।। प्रभु नाम हिये निशिदिन ही रहत जाके, सो ही शिव पाय नहीं होय भववासी है।३।। त्रिभुवननाथ तेरी महिमा अपार महा, अधम उधारे बहु तारे एक छिन में। तेरो नाम लिये ते अनेक दुख दूर होत, जैसे अधिकार विले जाय सही दिन में।। तू ही है अनंतगुण रिद्धि को दिवैया देव, तू ही सुखदायक है प्रमु खिन-खिन' में। तू ही चिदानंद परमातमा अखंडरूप, सेये पाप जरे जैसे ईंधन अगनि' में।।६४ ।। देव जगतारक जिनदेश हैं जगत माहि, अधम उधारण को विरद अनूप है। सेयें सुरराज राज हू से आय पाय परें, हरे दुख-द्वंद प्रभु तिहुंलोक भूप है।। जाकी थुति किये ते अनंतसुख पाइयतु, वेद में बखान्यो जाको चिदानंद रूप है। अतिशय अनेक लिये महिमा अनंत जाकी, सहज अखंड एक ज्ञान का स्वरूप है ।।६५।। नाम विसतारो महा करि है छिनक मांहि, अविनासी रिद्धि-सिद्धि नाम ही तैं पाइये। तिहुलोक नाथ एक नाम के लिये ते वै है, १ तत्त्व, २ क्षण-क्षण में. ३ जलता है, ४ अग्नि. ५ मुद्रित पाठ है-निसतारी
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