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तीर्थंकरदेव मिलें दसक हजार ऐसी, महिमा महत' एक प्रतिमा की जानिये ।। सो तो पुण्य होय तब विधि सों विवेक लिये, प्रतिमा के ढिग जाय सेवा जब ठानिये। नाम के प्रताप सेती तुरत' तिरे हैं भव्य, नाम-महिमा विनते अधिक बखानिये।।६० ।। कर में जपाली धरि जाप करे बार-बार, धन ही में मन यातें काज नहीं सरे है। जहां प्रीति होय याकी सोई काज रसि पडे", विना परतीति यह भवदुख भरे है। तातें नाम माहिं रुचि घर परतीति सेती, सरधा अनाये तेरो सबै दुख टरे है। नाम के प्रताप ही ते पाइये परम पद, नाम जिनराज को जिनदेश ही सो करे है। 1६१|| नाम ही को ध्यान में अनेक मुनि ध्यावत हैं, नाम ते करमफंद छिन में विलाय है। नाम ही जिहाज भवसागर के तिरवे को, नाम ते अनंतसुख आतमीक पाय है।। नाम के लिये ते हिये राग-दोष रहे नाहि, नाम लिये ते होय तिहुं लोकराय है। नाम के लिये ते सुरराज आय सेवा करे, सदा भव मांहि एक नाम ही सहाय है।।६२ ।। धन्य पुण्यवान है अनाकुल सदैव सो ही दुख को हो सो ही सदा सुखरासी है।
१ महत्त्व, २ पास, ३ से. ४ तुरन्त, ५ उनसे, ६ जयमाला. ७ स्वाद आता है र आने पर. ६ सभी, १० मुद्रित पाठ 'धाय' है. प्राप्त करता है
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