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आप अधिकार मांहि ताको दुखभार होय, अधिकार ऐसो बुधिवंत ने न भागो है। आप के प्रभुत्व में न साधरमी सार करे, आछादन लगे मूढ निंद्य ही कहायो है। देके धन संपदा को आपके समान करे, साधरमी हासि' मेटि पुण्य जे उपायो है।।५७ ।। अरहन्त सिद्ध श्रुत समकित साधु महा, आचारज उपाध्याय जिनबिंब सार है। धरम जिनेश जाको धन्य है जगत मांहि, च्यारि परकार संघ सुध अविकार है।। पूजि इन दशन को पंच परकार विनै.२ कीजिए सदैव जाते लहे भव पार है। धरमको मूल यह ठौर-ठौर विनै गायो, विनैवंत जीव जाकी महिमा अपार है।।५८ ।। नाम नौका चढिके अनेक भव पार गर्य, महिमा अनन्त जिननाम की बखानी है। अधम अपार भवपार लहि शिव पायो, अमर निवास पाय भये निज ज्ञानी है।। नाम अविनाशी सिद्धि-रिद्धि-वृद्धि करे महा, नाम के लिये ते तिरे तुरत भवि प्राणी है। नाम अविकार पद दाता है जगत माहि, नाम की प्रभुता एक भगवान जानी है।।५६।। महिमा हजार दस सामान्य जु केवली की, ताके सम तीर्थंकरदेवजी की मानिये।
१ प्रस, गिरावट. र पाँच प्रकार की विनय-झान विनय, दर्शनविनय, चारित्रविनय, तप विनय, उपचार विनय, ३ मुद्रित पाठ है-'हा'. भव्य प्राणी. ४ समान
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