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खरचे हजार मनि' धरि के उमाह सों। धरम के हेत नेक खरच जो वणि आवे, सकुचे विशेष, धन खोय याही राह सों।। जाय जिन मंदिर में बाजरो' चढावे मूढ़, आप घर माहि जीमे चावल सराह सों। देखो विपरीत याही समै माहि ऐसी रीति, चोर ही को साह कहे कहे चोर साह सों-१३६ ।। गुणथान तेरह में केवलप्रकाश भयो, तहां इन्द्र पूजा करे आप भगवान की। तीसरे थड़े पै खड़ो दूरि भगवानजी सों, चढ़ावे दरव वतु; कला शाहादान की। धरमसंग्रहजी में कह्यो उपदेश यहै, तातें जिनप्रतिमा भी जिन ही समान की। यातें जिनबिम्ब पाय लेप न लाइयतु. लेप जु लगाये ताकी बुद्धि है अज्ञान की।।३७ ।।
दोहा वीतराग परकरण१० में, सभी सराग न होय ! जैसो करि जहां मानिये, तैसी विधि अवलोय।।३८ ।।
सवैया साधरमी निरधन देखि के चुरावे मन, धरम को हेत कछु हिये नहीं आवे है। सुत परिवार तिया इन सों लग्यो है जिया, १ मन में, २ उमंग पूर्वक, ३ लिए. ४ संकोच करता है. ५ बाजरा. ६ मुद्रित पाठ "जीये है. जीगता है, खाता है, ७ सराहना पूर्वक. ८ साहुकार से. ६ आठ, १० प्रकरण में
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