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इन ही के काज मूढ़ लाखन लगावे है।। नरक को बंध करे हिये में हरख धरे, जनम सफल मानि-मानि के उम्हावे है। नेक हित किये भवसागर को पार होत, धरम को हित ऐसा श्रीगुरु बताव है ||३६ ।।
दोहा क्रोडों खरचे पाप को, कौड़ी धरम न लाय। सो पापी पग नरक को, आगे-आगे जाय ।।४।। मान बड़ाई कारणे, खरचे लाख, हजार। धरम अरथि कोड़ी गये, रोवत करे पुकार ||४१।। करम करत हैं पाप के, बार-बार मन लाय। धरम सनेही मित्र की, नैक न करे सहाय ।।४२।। करन कामिनी सों करे जैसी हित अधिकाइ।
सो हित नहि धरम सों यातँ दुरगति थाइ ।।४३।। एक सुत ब्याह काजि लावत है हजारों धन, क हे हम धन्य आजि शुभ घरी पाई है। समरथ भये ते सब धन को छिनाय लेत, कुगति को हेतु यासों कहे सुखदाई है।। देशना धरम की दे दोऊ लोक हित ठाने, तिन को न माने मूढ़ लगी अधिकाई है। माया भिखारी महा कर्म ही को अधिकारी, करे न धरम बूझि भौथिति बढ़ाई है।।४४|| कामिनी को कनक के आभूषन करि-करि, करे महा राजी जाके वि. मति लागी है। १ लाखों रुपये. २ उमंग, हर्ष. ३ करोड़ों, ४ कर्ज लेता है, ५ संसार की स्थिति. ६ स्वर्ण.
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