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दोहा
ग्रंथ स्वरूपानंद को, लीजे अरथ विचारि। सरधा करि शिवपद लहे, भवदुख दूरि निवारि ।।६३ || संवत सतरा सौ सही, अरु इकानवे जानि। महा' मास सुदि पंचमी, किया सुख की खानि । ६४ || देव परम गुरु उर धरी, दंत स्वरूपानद । 'दीप' परम पद को लहे, महा सहज सुख कंद ।।६५ ।।
इति
उपदेश सिद्धान्तरत्न
दोहा परम पुरुष परमातमा, गुण अनंत के थान। चिदानंद आनंदमय, नमो देव भगवान ।।१!! अनुपम आतम पद लख, धरे महा निज ज्ञान। परम पुरूष पद पाइ हैं, अजर अमर लहि थान ।।२|| विविध भाव धरि करम के. नाटत है जगजीव । भेद ज्ञान धरि संतजन, सुखिया हॉहि सदीव ।।३।।
सवैया करम के उदै केउ' देव परजाय पावें, भोग के विलास जहां करत अनूप हैं। महा पुण्य उदे केउ नर परजाय लहें. अति परधान* बडे होइ जग भूप हैं।। केउ गति हीन दुखी भये डोलत हैं, राग-दोष धारि परें भवकूप हैं। १ माघ माह. २ कई. कितने, ३ उदय में, ४ मुखिया,
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