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आतमसरूप जाके कहे हैं अनंत गुण, चिदानंद परिणति कहीं परजाय है। दोऊ मांहि व्यापिके सर्वे रहे एक रूम एकत्व सकति ज्ञानी ज्ञान में लखाय है । सुख को समुद्र अभिराम आप दरसावे, जाके उर देखे सब दुविधा मिटाय है । सहज सुरस को विलास यामें पाइयतु, सदा सब संतजन जाके गुण गाय है | | १६८ ।। एक द्रव्य व्यापिके अनेक गुण परजाय, अनेकत्व सकति अनंत सुखदानी है। लक्षन अनेक के विलास जे अनंते महा, करि है सदैव याही अति अधिकानी है । प्रगट प्रभाव गुण गुण के अनंते करे, ऐसी प्रभुताई जाकी प्रगट बखानी है।
हिमा अनंत ताकी प्रगट प्रकाशरूप, परम अनूप थाकी जग में कहानी है | |१६६ ।। देखत सरूप के अनंत सुख आतमीक, अनुपम है है जाकी महिमा अपार है। अलख अखंड जोति अचल अबाधित है, अमल अरूपी एक महा अविकार है। सकति अनंत गुण धरे है अनंते जेते, एकमें अनेक रूप फुरे निरधार है। चेतना झलक भेद धरे हू अभेदरूप, ज्ञायक संकति जाने जाको विसतार है । ।१७० ।।
१ लक्षण, २ अनन्त, ३ शक्ति ४ स्फुरायमान प्रकट होती है.
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