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आपनो' अखंड पद सहज सुथिर महा, करे आप आप ही तैं यहे अपादान है। सासतो खिणक उपादान करे आप ही तैं. आप है अनंत अविनासी सुखथान है। याही ते अनूप चिदरूप रूप पाइयतु, यातें सब सकति में परम प्रधान है। अचल अमल जोति भाव को उद्योत लिये, जाने सो ही जान सदा गुण को निधान है।।१६५ ।। किरिया करम सब संप्रदान आदिक को, परम अधार अधिकरण कहीजिये। दरसन ज्ञान आदि वीरजअनंत गुण, वाही के अधार यातै वामें थिर हूजिये। याही की महतताई गाई सब ग्रंथनि में, सदा उपादेय सुद्ध आतम गहीजिये। सकति अनंत को अधार एक जानियतु, याही तें अनंत सुख सासतो लहीजिये।।१६६ ।। पर को दरव खेत काल भाव चार्यों यह, सदा काल जामें पर सत्ता को अभाव है। याही ते अतत्त्व महा सकति बखानियतु, अपनी चतुक" सत्ता ताको दरसाव है। आन को अभाव भए सहज सुभाव है है. जिनराज देवजी को वचन कहाव है। याके उर जाने से अनंत सुख पाइयतु, एक अविनासी आप रूप को लखाव है।।१६७।। १ अपना. २ अपादान शक्ति. ३ शाश्वत, कालिक धुव. ४ क्षणिक, तात्कालिक, ५ परमात्मा, विभुत्व शक्ति, ६ ज्ञान, ७ क्रिया, ८ वीर्य, ६ चारों. १० अतत्त्व शक्ति, ११ चतुष्क. चारों की
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