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काज नहीं सर्यो' तातें कछू न बसाय याको, होनहार भए काज सीझे जथाविधि तैं। यासे भवितव्य तो सो काहू पै न लंधी' जाय, करि है उपाय जो तो नाना ये विधि तैं।।१३६ ।। एक नै प्रमाण है तो काहे को जिनेंद्रदेव, कहे धनि जीवन को उद्यम बतावनी। तत्त्व का विचार सार वाणी ही ते पाइयतु, वाणी के उथापे याकी दसा है अभावनी । मोक्षपंथ साधि-साधि तिरे जिनवाणी ही ते, यह जिनवाणी रुचे याकी भली भावनी । याही के उथापे भली भावनी उथापी जासे, यह भली भावनी सो उद्यम तैं पावनी।।१३७ ।। उद्यम अनादि ही के किए हैं न ओर आयो. कहूं न मिटायो दुख जनम-मरण को। यों तो केउ बेर* जाय जाय गुरुपास जाच्यो, स्वामी मेरो दुख मेटो भव के भरण को। दीनी उन दीक्षा इनि लीनो भले भाव करि, समै विनु आए काज कैसे हवै तरण को। यातें कहे विविध बनायके उपाय ठाने, बली काज जानि होनहार की ठरण" को । १३७ ।। जैसे काहू नगर में गए विनु काज न वै, पंथ बिनु कैसे जाय पहुंचे नगर में। तैसे विवहार नय निहचे को साधतु है, १ सफल हुआ. . २ पार करना. ३ यदि एक नय प्रमाण हो तो, ४ दिव्यध्यान में, जिनेन्द्र भगवान् की वाणी में, ५ लोप करने, उत्थापन करने से, ६ अभाव की. शून्य को. ७ होनहार. इसका लोप, उत्थापन करने से मवितव्यता का भी उससे अभाव हो जाएगा. ६ अन्त. १० कई बार, ११ स्थिति
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