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साधि जाको साधन यो लक्षण लखाइये। आए उर रुचि यह रोचक कहावे महा, रुचि उर आए बिनु रोचक न गाइये । अंतरंग उद्यम तैं आतमीक सिद्धि होत, मंदिर के द्वारि' जैसे मंदिर में जाइये । ।१३३ ! | प्रकृति' गये ते वह आतमीक उद्यम है, सो तो होनहार भए प्रकृति उठान है। नाना गुण-गुणी भेद सीख्यो न सरूप पायो काल ले अनादि बहु कीनो जो सयान' है । यातैं होनहार सार सारे जग जानियतु होनहार मांहि तातै उद्यम विणान' है । चाहो सो ही करो सिद्धि निहचे के आए हवै है, निचे प्रमाण यातैं सत्यारथ ज्ञान है । ।१३४ ।। तीरथसरूप भव्य तारण है द्वादशांग, वाणी मिथ्या होय तो तो काहे जिनभासी है। जिनवानी जीवन को कीनो उपगार यह, याकी रुचि किए भव्य पावे सुखरासी है। करत उच्छेद याको कैसे तत्त्व पाइयतु, मोक्षपंथ मिटे जीव रहे भववासी है।
निहचे प्रमाण तोऊ' जाही - ताही भांति,
अति अनुभौ दिढायो गहि दीजिए अध्यासी है ।।१३५ ।। यह तो अनादि ही को चाहत अभ्यास कियो,
याके नहीं सारे पावे काल की लबधि तैं ।
जतन के साध्य सिद्धि होती तो अनादि ही के, द्रव्यलिंग धारे महा अति ही सुविधि तैं।
१ दरवाजे में से, २ कर्म-प्रकृति, ३ अभाव, ४ चतुर, भेदविज्ञान- कुशल, ५ उपकार,
६ सब भी, ७ जिस - तिस ८ राग में एकत्व बुद्धि ६ पुरुषार्थं के
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